SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 170
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५२ भक्तामर स्तोत्र एक दिव्य दृष्टि स्थिति मे हम कमरे मे बैठे व्यक्तियो की और कमरे के आसपास से आनेवाली आवाजो को सुन सकते हैं, इससे अतिरिक्त की नही । परन्तु हम यह भी समझते हैं कि अतिरिक्त काफी कुछ ध्वनियाँ तरगित हो रही हैं परन्तु हम उन्हें नही सुन सकते हैं। यदि इन तरगो को पकड़ा जाय तो वे यहाॅ पर भी सुनी जा सकती हैं। इसका प्रमाण यह है कि इस समय कोई श्रवणध्वनि यत्र माइक, रेडियो, ट्रांजिस्टर, टेलीविजन आदि द्वारा भारत से ही नही विदेशो से Broadcast होती हुई आवाज भी हमे सुनाई देने लगती है। इस Technique मे ये ध्वनि यत्र उन तरगो को पकड़कर हमारे कान पकड़ सके वैसी तरगो रूपान्तरित कर देते हैं । वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ध्वनि तरंगो का रस therapy को अब हमे अपने मे रूपातरित करने का मार्ग खोजना है। सामान्यत ये ध्वनि तरंगे दो प्रकार की हैं १ साधारण वार्तालाप रूप और २ मानस तरगे । इनमें दोनो की लम्बाई और शक्ति (Length and Strength) मे बहुत अन्तर है। जिसकी लम्बाई कम है उसमे शक्ति अधिक है। प्रथम सामान्य वार्तालाप मे हमारी ध्वनि तरगे १० फीट दूर तक जाती हैं। इसमे विचार तरगें Wave Length कम हैं परन्तु इसकी Strength बहुत है । परिणामत वार्तालाप की ध्वनि तरंगो को आँधी, तूफान, वर्षा या अन्य आवाजो से प्रत्याघात या चोट पहुँचने से ये बिखर भी जाती है, परन्तु विचार तरगो पर इन सबका कोई असर नही होता। बल्कि कभी तीव्रता मे हजारो मील दूर की सफर ये बिना किसी बाधा के पार कर लेती हैं। सामान्य शब्द अक्षर हैं पर योगीपुरुष जब इसे अपने चिन्तन की तरगो मे रूपातरित करते हैं तब ये अक्षर मत्र या स्तोत्र बन जाते हैं। भक्त साधक भक्तिपूर्ण एकाग्रता मे जब इस स्तोत्र की अक्षर तरगो के माध्यम से स्तोत्रकार में निहित चिन्तन तरगो को स्वय की शक्ति तरगो मे समायोजित करता है तब स्तोत्र परिणाम प्रकट करता है । रेडियो मे जो कार्य Crystal या Aerial करते हैं, आध्यात्मिक प्राणशक्ति के जगाने मे वही कार्य स्तोत्र करते हैं। आकाशवाणी आपने देखी होगी, यहाॅ पर स्पष्ट दिखाई देता है, कि शब्द तरगो को पहले विद्युत् तरगो मे बदला जाता है। यह graph M manasm इस प्रकार विद्युतीय रूप मे रूपातरित होता है । फिर रेडियो का Aerial विद्युत तरगो को पकड़कर शब्दों में बदल देता है और हम तक आसानी से पहुॅचा देता है । महापुरुष मन्त्र स्तोत्रो मे स्वय की शक्ति को रूपातरित करते हैं, हम स्तोत्र के माध्यम से इसे पकड़कर आराधना द्वारा स्वय की शक्ति में परिणत कर सकते हैं। पन्नवणा सूत्र मे सिद्धान्त के अनुसार इन्ही विचारधारा को बहुत अच्छे तरीके से समझाया गया है। जीव पहले भाषा द्रव्य को ग्रहण करता है । तत्पश्चात् वह उस भाषा को बोलता है अर्थात् गृहीत भाषाद्रव्यो का त्याग करता है । जीव कायिकयोग से (भाषा योग्य पुद्गलो को) ग्रहण करता है तथा वाचिकयोग से (उन्हें ) निकालता है।
SR No.010615
Book TitleBhaktamar Stotra Ek Divya Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1992
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy