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________________ समर्पण १४७ एक बहू दूसरी बहू से कहती है-सास बड़ी लड़ती थी पर स्तोत्र पाठ से वश मे हो गयी। ये सारा Repetition है। इसमे हम स्तोत्र के रचयिता को repeat करते हैं। स्तोत्र के आराधक को Repeat करते हैं। और कभी Shp हो गये तो? तो कहेंगे भक्तामर स्तोत्र सही नहीं है। ये सारी कल्पनाये हैं। यही है न हमारा Mensuration या certification ? ____Dedication मे अभिभावक अकेला है। वह भक्त है क्योंकि उसके हृदय मे भक्ति है। वह दूसरो को नहीं देखता है कि कोई चला या नहीं? कोई पहुंचा या नहीं? इस सम्बन्ध मे उसे न तो कौतूहल है और न सशय है ।वह पूरे आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ता हैपरमात्मा मेरे हैं, उन्हें मुझे ही पाना है। मुझ मे ही प्रकट करना है। यह मेरा अपना ही रूप है, स्वरूप है। यह है समर्पण, भक्ति। किसी मॉ से यह पूछो, तुम अपने बेटे को इतना प्यार क्यो करती हो और वह यदि यह कहे कि यह तो मेरा फर्ज है तो उसका मातृत्व अधूरा है। पर यदि वह यह कहे कि मेरे हृदय मे मातृत्व है, मै प्यार करती नही मेरे से हो जाता है तो वह वात्सल्य है। यह मा का अपने बच्चे के प्रति Dedication है। जहाँ भक्त का Dedication है वहाँ परमात्मा का Radiation है। जहाँ भाव है, वहाँ प्रभाव है। ___ हमारी स्थिति ऐसी है कि हम सद्गुरु की कृपा का, परमात्मा के अनुग्रह का और स्तोत्र का प्रभाव तो चाहते हैं परन्तु हम मे समर्पण के कोई भाव नहीं रहते हैं। ___यहाँ राजा भी Repetition कर रहा था। मुनि कौन हैं ? उनके परमात्मा कैसे हैं ? स्तोत्र क्या है या स्तोत्र का मूल्याकन क्या है ? ऐसा कुछ भी नही समझने वाला नरपति स्तोत्र को उसी प्रकार Repeat करता है। जैसे Cassette Recorder मे Cassette repeat होती रहती है। इसीलिये कहा है "स्तोत्रार्थ स्तोत्र चैतन्य यो न जानाति तत्त्वत , शतलक्षजपतोऽपि स्तोत्रसिद्धिं न ऋच्छति।" स्तोत्र चैतन्य जव तक न प्रकट हो वह सिर्फ स्तोत्र है। स्तोत्र को, स्तोत्र के चैतन्य को जो तत्त्व से नही जानता है उसे उसका करोडो की सख्या मे जाप करने पर भी पूर्ण फल नही मिलता है। ___ भाषावर्गणा से अधिक सूक्ष्म श्वासोश्वास वर्गणा है परन्तु मनोवर्गणा तो श्वासोश्वास वर्गणा से भी अधिक सूक्ष्म है और मनोवर्गणा से भी अधिक सूक्ष्म कर्मवर्गणाए हैं। उनके क्षयोपशम से अतर्मुखी वृत्ति प्रकट होती है। सम्यग्दर्शन प्रकट होता है। उसी नाम है स्तोत्र चैतन्य। तभी अप्रकट प्रकट होता है। अतीन्द्रिय की अनुभूति होती
SR No.010615
Book TitleBhaktamar Stotra Ek Divya Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1992
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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