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________________ भीपण पीठ मवद् प्रो १६९ सम्मोनियों सनुद में सुमित क्षोभ के पाप्त भयानक ऐसे नक नगर नछे घडियालेका चक्र समूह तय पाठोन भीनकाय नछतिये विशिष्ट प्रकार के नल्यो से भयकर (तथा) उल्वण - प्रकट वाडवाग्नि - वडवानल से युक्त रगत्तरगशिखरस्थितयानपात्रा - उछलती-लहराती ऊपर नीचे को होती हुई लहरो के शिखर पर डगमगा रहे, विचलित हो रहे हैं जहाज जिनके ऐसे पुरुष त्रास - आकस्मिक भय को विहाय - छोड़कर द्रजन्ति -- आगे बढते चले जाते हैं। यह श्लोक गोत्र कर्म का प्रतीक है। ससार रूपी समुद्र मे जीवन रूपी जहाज अपने गन्तव्य स्थान पर जाने के लिये बडी तीव्रता से गति को साधकर प्रगति करता है परन्तु इस महायात्रा के मध्य में गोत्र कर्म की ऊँची नीची तरगे उठकर कभी मान-अपमान या आकर्षण-घृणा की भावनाओं से उत्पन्न विषय वासना रूप मत्स्य से टकराता है। इस टकराव से कारण भवजन्य दर्भावना की वाडवाग्नि उत्पन्न होती रहती है। एक वैज्ञानिक तथ्य है कि पानी मे भी आग उत्पन्न हो सकती है। बिजली दो प्रकार की होती हैं१ धनात्मक और २ ऋणात्मक। पानी से भरे मेघ जब आपस में टकराते हैं तो उसमे रही दोनो तरगो मे सघर्ष होने से बिजली पैदा होती है। मनुष्य का सिर विद्युत् का धनात्मक केन्द्र है और पैर ऋणालक केन्द्र है। सृष्टि मे उत्तरी ध्रुव मे धनात्मक बिजली अधिक है और दक्षिण मे ऋणात्मक बिजली अधिक है। पा कारण है दक्षिण की ओर पैर करके और उत्तर की ओर सिर रखकर सोने व्यक्तियों को हृदय तथा मस्तिष्क की बीमारियाँ अधिक होती हैं। बिजली का नियम
SR No.010615
Book TitleBhaktamar Stotra Ek Divya Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1992
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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