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________________ पदानि १२४ भक्तामर स्तोत्र एक दिव्य दृष्टि उन्निद्रहेमनवपङ्कज-पुञ्जकान्ति पर्युल्लसन्नख मयूख-शिखाभिरामौ। पादौ पदानि तव यत्र जिनेन्द्र । धत्तः, पद्मानि तत्र विबुधाः परिकल्पयन्ति ॥३६॥ जिनेन्द्र! - हे जिनेन्द्र। उनिद्रहेमनवपङ्कजपुजकान्ति - ताजे खिले हुए सुवर्ण कमल के समूह के समान सुन्दर कान्ति को धारण करने वाले पर्युल्लसन्नखमयूखशिखाभिरामौ - सब ओर तरगित नखो की कान्तिमान किरणो की अग्रभागीय आभा से मनोहर तव पादौ - आपके युगल चरण जहाँ कदम धत्त रखे जाते हैं तत्र - वहाँ - देव-समुदाय पद्मानि - कमलो को परिकल्पयन्ति - रचते जाते हैं, विकुर्वित करते जाते हैं। समवसरण की धर्मसभा मे देव समुदाय-विकुर्वित खिले हुए नूतन स्वर्ण-कमलो की रचना करते हैं। अनन्त चतुष्टय के स्वामी, चौतीस अतिशयो से युक्त, अष्ट महाप्रतिहार्य और नव केवल लब्धियो के धनी अरिहत परमात्मा स्वर्ण-कमलो पर चरण रखकर पधारते हैं। वीतरागता से व्याप्त सम्पूर्ण वातावरण परमात्मा के पधारने से परमानन्दमय हो जाता है। सहजात्मस्वरूप की अतरग और बाह्य विभूति तीनो लोको के जीवो के आकर्षण का एकमात्र आधार बन जाती है। भाव विभोर युक्त तरगो से लहराते विशुद्ध वायुमडल मे ऊर्ध्व गुरुत्वाकर्षण के स्पदन धर्म सत्ता की महाघोषणा फैला रहे हैं। पवित्र पर्यावरण आत्मप्रदेशो मे कपन फेलाकर समस्त चेतना को ऊर्ध्वमुखी बनाता है। विवुधा शब्द पुन हमारा ध्यान देव से भक्तो की तरफ जोड़ देता है और भक्तात्मा परमात्मा से कहता है क्या देव-विकुर्वित सुवर्ण-कमलो पर पद-न्यास कर समवसरण में पचारोगे? ये कमल तो विशेष समय मे विकुर्वित होते हैं परतु हे परमात्मा। मेरा हृदय-कमल नित्य नवोदित, सदा मुदित, भावो से सतत विकसित, भक्ति से विलसित हैं और सदा-सर्वदा तेरे चरणो ने समर्पित है। प्रभु। पधारो न इस हृदय-कमल मे। विकुवित कमल जड़ और नेग हृदय-कमल चतन्यगुण सपन्न है। विवुधा
SR No.010615
Book TitleBhaktamar Stotra Ek Divya Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1992
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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