SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०८ भक्तामर स्तोत्र एक दिव्य दृष्टि स्मृति । बुद्धि का मतलब हमारा अपना स्मरण। कोई कितना ही विद्वान हो लेकिन जिसे अपने स्वरूप का बोध नहीं है उसके ज्ञान की जैन दर्शन में कोई Valueनहीं है। स्वय का बोध पाने के लिए हमारे तीर्थंकर मनीषी जब तक केवलज्ञान नही होता तब तक मौन रहते हैं और हमारे जैसे पाटे पर बैठकर बोलते रहते हैं। तो बुद्धिबोधात् का अर्थ होता है स्वय का बोध हो जाना। और, स्वय का बोध होने के साथ-साथ अब सबध करे विबुधार्चित का। बुद्धिबोधात् का मतलब परमात्मा से है परन्तु विबुधार्चित का मतलब किससे है ? विबुधार्चित को इस पक्ति मे पाकर हमारे विद्वान महानुभाव अर्थ करते हैं-गणधरो के द्वारा अर्चित, विद्वानो के द्वारा अर्चित। मै कहती हू तीसरे श्लोक मे आपको यह अर्थ देने मे क्या आपत्ति थी? लेकिन वहा पादपीठ शब्द पड़ा था इसलिये हमने देव अर्थ कर लिया। मै आपसे पूछती हूँ आप जब परमात्मा के समवसरण मे जाएगे और जिस पादपीठ पर परमात्मा का पैर रहेगा क्या आप उसको नमस्कार नही करेंगे? क्या देव ही करेंगे, मानव नही? क्यो हम विबुध का अर्थ ऐसा करें? बोधिलाभ की प्राप्ति के लिये, सम्यक्त्व की प्राप्ति के लिये जिस किसी ने भी प्रयास किया ऐसे विशिष्ट बुद्धिवाले विबुध होते हैं और उनके द्वारा आप अर्चित हो, पूजित हो। आप स्वय ज्ञान को उपलब्ध हो। इस प्रकार हमारे आपके सम्बन्ध से आप बुद्ध हो। अब कहते हैं "त्व शकरोऽसि भुवनत्रय शकरत्वात्" तीनो भुवन का शकर करने के कारण आप शकर हो। शकर शब्द का अर्थ है शम् करने के कारण आप शकर हो। सम करते हैं अर्थात् समान करते हैं इसीलिये।सम किसमे करेंगे भक्तो मे ही करेंगे न जो भक्ति नही करते उनको सम नही करते मै स्पष्ट कहती हू। भक्त को वे सम नहीं करते तो हम उनको मानते ही क्यो ? हम उनको नमस्कार करते ही रहे, करते ही रहे और हमारे नमस्कार का यदि वे स्वीकार नहीं करते तो हम नमस्कार क्यो करेंगे? हम भक्तामर गाते ही रहे 'त्वामेव सम्यगुपलभ्य जयन्ति मृत्यु' और हम यह कहते ही रहे क्षणात् क्षयमुपैति तेरी प्रार्थना करने से क्षणभर मे अनन्त पापो का क्षय हो जाता है और फिर भी क्षणमात्र पाप भी यदि सरकता न हो तो हम उनकी स्तुति क्यो करे? हम जिस Challenge से आगे बढ़ते हैं उसकी हमे यहा सम्पूर्ण खात्री मिलती है, Guaranteeमिलती है कि वे शकर है। सम करते हैं इसलिये शकर होते हैं। अब हम देखेगे शम् याने जिसे वे करते हैं, वह शम् क्या है ? शम् का अर्थ होता है कल्याण, मगल, सुख, शान्ति, प्रसन्नता, आनन्द। परमात्मा इसके करनेवाले होने से शकर है। सम का पहला अर्थ उत्पत्ति के अनुसार वे सम मे केवलज्ञान, कल्याण, मगल, सुख, शान्ति, प्रसन्नता, आनन्द की उत्पत्ति करनेवाले हैं।
SR No.010615
Book TitleBhaktamar Stotra Ek Divya Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1992
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy