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________________ १०२ भक्तामर स्तोत्र एक दिव्य दृष्टि मुनि किसे कहते हैं ? जिसने ससार का त्याग कर दिया क्या वे सब मुनि वन गये? मुनि याने जिनके मन मे यह ससार सिर्फ परमाणुओ की रूपातर कथा मात्र है और कुछ नही। उनको यदि ससार की व्याख्या पूछी जाय तो वे इतना ही कहेंगे। ऐसे मुनि आपको जो मानते है वह आपका स्वरूप है। ___आचार्यश्री की मान्यता को अब हम श्लोक के माध्यम से देखेगे और हमारे स्वरूप मे प्रकट करेंगे। तीन श्लोको के माध्यम से यहा परमात्मा के २४ विशेषण प्रस्तुत किये हैं। तीर्थंकर भी २४ होते हैं और दिन के घटे भी २४ होते हैं। इस प्रकार २४ के साथ हमारा व्यावहारिक और आत्मिक सबध रहा है। प्रतिघटे मे एक-एक तीर्थंकर को प्रस्तुत विशेषणो से स्मरण करना यह भी एक आराधना का क्रम है। विशेषणो का सर्कल बनाले और एक के बाद दूसरे तीर्थंकरो से इसे सयुक्त करते जाएँ तो बड़ा आनद आयेगा इस अनुष्ठान मे। १ परमम् पुमासम्-आप परम पुमास हो। परम किसको कहते हैं ? जिनके लिये चरम और कुछ नही रहता है। चरम के बाद परम। जो पहले परम था, अभी परम है और जो परम रहने वाला है। परम वह कहलाता है जो जिसे भी मिले उसे परम बना देवे। २ आदित्यवर्ण-सूर्य के जैसी प्रभावाले। सूर्य का वर्णन कई बार आ चुका है। आचार्यश्री ने सूर्य और चन्द्र को महत्त्व देकर हमारे हृदय और बुद्धि के साथ इसका सम्बन्ध स्थापित किया है। साथ ही सूर्य का मणिपूर चक्र से साधना मे भी सम्बन्ध स्थापित होता है। ३ अमलम्-निर्मल हो। सर्वथा कर्ममल से रहित हो। आपका जो स्मरण करता है वह भी निर्मल होता जाता है। ४ तमस परस्तात्-हे परमात्मा आप अन्धकार से परे हैं, और आपका जो स्मरण करता है वह भी अज्ञानरूप अन्धकार से पर हो जाता है। यहा परमात्मा को सिर्फ विशेष्य के रूप मे ही न देखकर इनके साथ अभेद करने से हमारे जीवन में परिवर्तन आ सकता है। Power Contact मे आयेगे तो Battery charge होगी, नही तो Batterydown | जिस बिजली का Connection ही सही नही है वहा सिर्फ Bulbs का Decoration कुछ नही कर पाता है। ५ अब कहते हैं आप मृत्युजय हो और 'सम्यक् उपलभ्य मृत्यु जयन्ति'- तुमको जो भलीभाँति प्राप्त करते हैं वे मृत्यु को जीतते हैं। तुझे अच्छी तरह से प्राप्त करके-यहा भलीभांति-सम्यक् याने अच्छी तरह से क्यो कहा? परमात्मा को पाने का इससे अच्छा दूसरा तरीका भी कौन सा हो सकता है? परमात्मा के प्रति किये जानेवाले प्रेम भी दो तरह के हैं- 1 Sensitive और दूसरा Scientific प्रथम प्रेम मात्र अनुराग भरा होता है जिसमे व्यक्ति अपनी परिस्थितियो के --- - - -------
SR No.010615
Book TitleBhaktamar Stotra Ek Divya Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1992
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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