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________________ ९८ भक्तामर स्तोत्र - एक दिव्य दृष्टि करेंगे तो पूरे भक्तामर स्तोत्र मे एक शब्द या एक भी पद्य ऐसा नही मिलेगा जिसमे उन्होने परमात्मा से ऐसी प्रार्थना की हो कि हे परम प्रभु! तुम मेरे आराध्य हो फिर भी मै बेडियो के बधन मे बधा हूँ। पहले तो बधना ही नही चाहिये और यदि बध गया तो वे बधन एक साथ टूट जाने चाहिये। मै एक-एक गाथा गाऊ और बधन टूटते जायँ . लेकिन ऐसा कोई पद्य इसमे नहीं है। बल्कि ऐसे भाव हमें अवश्य मिलते हैं कि वे तथ्य प्रस्तुत करते हैं। अभी दो दिन से हमारे यहा कर्म सगोष्ठी चल रही थी। कई विद्वानो ने विचारो और सिद्धान्तो का सामजस्य कर कर्म की theory पर विचार प्रस्तुत किये। मैं कभी सोचती हूँ हम किसी एक महापुरुष के जीवन की गहराई में उतर जायें तो हमे कर्म सम्बन्धी सारे प्रश्नो का समाधान मिल सकता है। आचार्यश्री हमे स्पष्ट समझाते हैं कि बेड़ियो के बधन आये क्यो? कौन किसको बेडियो मे बाध सकता है? यही राजा इसी मुनि को क्यो बेड़ी पहनाते हैं ? हमारे पास इसका एक ही उत्तर है कर्म से। आचार्यश्री कहते हैं- कर्म के माध्यम से बेड़िया आयी हैं, जिस क्षण ये कर्म टूटेंगे, बेड़िया भी टूट जाएँगी। है कोई आश्चर्य इस बात का? बधन के माध्यम निमित्तरूप राजा है, पर अब तोड़ने के माध्यमरूप निमित्त परमात्मा है। इस प्रकार आत्मा और परमात्मा के सम्बन्ध की, मिलन की, चिन्तन की और अन्त मे परमात्मा बन जाने की एक विशिष्ट प्रणाली वर्तमान युग मे कही मिल सकती है तो वह भक्तामर स्तोत्र है। जिनके अन्तर्मानस मे परमात्मा का तात्त्विक मिलन हो चुका है, हृदय मे निर्मलता आ चुकी है और जिनकी आत्मा विशुद्धि के क्षेत्र मे निरन्तर प्रगति करती हुई चली जा रही है। ऐसे आचार्यश्री के अनाहत नाद मे परमात्मा का स्वरूप प्रस्तुत होता है-- त्वामामनन्ति मुनयः परम पुमासमादित्यवर्णममलं तमसः परस्तात्। त्वामेव सम्यगुपलभ्य जयन्ति मृत्यु, नान्यः शिवः शिवपदस्य मुनीन्द्र | पन्था :॥२३॥ मुनीन्द्र। - हे मुनियों के नाथ! - मुनि लोग त्वाम् - तुमको १.परमम् पुमासम् - परम पुरुष, उत्कृष्ट पुरुष, लोकोत्तर पुरुष २. आदित्यवर्णम् - सूर्य के समान दैदीप्यमान ३ अमलम् - निर्मल, कर्म-मल रहित ४. तमस परस्तात् -- (अज्ञानरूप) अन्धकार से परे ५.त्वाम् एव - तुमको ही मुनय
SR No.010615
Book TitleBhaktamar Stotra Ek Divya Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1992
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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