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________________ कवि श्री ने सूक्ष्म के प्रति समदृष्टि का वरण कर अनाग्रहभाव से भारत के तीनो प्रमुख धर्म-दर्शनो (जैन, वौद्ध और वैदिक) के हृदय का एकीकरण किया है । कवि श्री जैसे मेघावी लेखक हैं, वैसे ही मेधावी चयनकार भी है । सत्य - जिज्ञासा को सम्पूर्ति, समन्वय और भारतीय आत्मा का सवोध इन तीनो दृष्टियों से प्रस्तुत ग्रंथ पठनीय वना है । आचार्य श्री ने भी उक्त दृष्टियो से इसे बहुत पसन्द किया है । मैं आशा करता हूँ कि कवि श्री को प्रबुद्ध लेखनी से और भी अनेक विन्यास प्रस्तुत होते रहेंगे । - मुनि नथमल तेरापंथी भवन, मद्रास 'सूक्ति त्रिवेणी' देखकर प्रसन्नता हुई । हमारे देश मे प्राचीन भाषाओ का अध्ययन धर्म के साथ लगा हुआ है, इससे उसके अध्ययन के विभाग अलग-अलग रखे गये हैं और विद्यार्थियो को तुलनात्मक अध्ययन का अवकाश मिलता नही । आपने मागधी, अर्धमागधी, पालि और संस्कृत सबको साथ करके यह संग्रह किया है, वह वहुत अच्छा हुआ । तुलनात्मक अध्ययन के लिये सुविधा होगी । इससे - प्रबोध बेचरदास पंडित ( दिल्ली विश्वविद्यालय) हमारे देश मे प्राचीन काल से ही सर्व धर्म समभाव की परम्परा रही है । अपने अपने धर्म में आस्था और विश्वास रखते हुए भी दूसरे धर्मों के प्रति पूज्य भाव रखने को ही आज धर्मनिरपेक्षता कहा जाता है । पूज्य उपाध्याय अमर मुनि ने जैन, बौद्ध और वैदिक धाराओ के सुभाषितो को एक प्रथ मे सग्रहीत करके उस महान परम्परा को आगे बढाया है । सूक्ति त्रिवेणी ग्रथ के प्रकाशन का मै स्वागत करता हूँ और आशा करता हूँ कि बुद्धिजीवियो और अध्यात्म जिज्ञासुओ को यह प्रेरणा प्रदान करेगा । - अक्षयकुमार जैन सपादक • नवभारत टाइम्स, दिल्ली - बम्बई
SR No.010614
Book TitleSukti Triveni Part 01 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1968
Total Pages813
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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