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________________ प्रकाशकीय चिर अभिलषित, चिर प्रतीक्षित सूक्तित्रिवेणी का सुन्दर एव महत्वपूर्ण सकलन अपने प्रिय पाठको के समक्ष प्रस्तुत करते हुए हम अपने को गौरवान्वित अनुभव करते हैं। जैन जगत् के बहुश्रु त मनीषी उपाध्याय श्री अमर मुनि जी महाराज की चिन्तन एव गवेपणापूर्ण दृष्टि से वर्तमान का जैन समाज ही नहीं, अपितु भारतीय संस्कृति और दर्शन का प्राय प्रत्येक प्रबुद्ध जिज्ञासु प्रत्यक्ष किंवा परोक्ष रूप से सुपरिचित है। निरन्तर बढती जाती वृद्धावस्था, साथ ही अस्वस्थता के कारण उनका शरीरवल क्षीण हो रहा है, किन्तु जव प्रस्तुत पुस्तक के प्रणयन मे वे आठ-आठ दस-दस घण्टा सतत सलग्न रहे है, पुस्तको के ढेर के बीच खोए रहे हैं, तब लगा कि उपाध्याय श्री जी अभी युवा हैं, उनकी साहित्य-श्रु त-साधना अभी भी वैसी ही तीव्र है, जैसी कि निशीथभाष्य-चूणि के सम्पादनकाल मे देखी गई थी। 'मूक्ति त्रिवेणी' सूक्ति और सभापितो के क्षेत्र में अपने साथ एक नवीन युग का शुभारम्भ लेकर आ रही है । प्राचीनतम सम्पूर्ण भारतीय वाड मय मे मे इस प्रकार के तुलनात्मक एव अनुशीलनपूर्ण मौलिक सूक्तिसग्रह का अब तक के भारतीय साहित्य मे प्राय अभाव-सा ही था। प्रस्तुत पुस्तक के द्वारा उम अभाव की पूर्ति के साथ ही सूक्तिसाहित्य में एक नई दृष्टि और नई शैली का प्रारम्भ भी हो रहा है। इस महत्त्वपूर्ण पुस्तक का प्रकाशन एक ऐसे शुभ अवसर के उपलक्ष्य में हो रहा है, जो समग्र भारतीय जनसमाज के लिए गौरवपूर्ण अवसर है। श्रमण भगवान महावीर की पच्चीम-सी वी निर्वाण तिथि मनाने के सामूहिक प्रयत्न वामान में बड़ी तीव्रता के माय चल रहे है। विविध प्रकार के साहित्यप्रनाशन की योजनाएं भी बन रही हैं । सन्मति जान पीठ अपनी विशुद्ध
SR No.010614
Book TitleSukti Triveni Part 01 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1968
Total Pages813
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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