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________________ पचपन स्थानाग को सूक्तियां २३. चार व्यक्ति शास्त्राध्ययन के योग्य नहीं हैं अविनीत, चटौरा, झगडालू और धूर्त । २४. कुछ साधक निह वृत्ति से साधना पय पर आते हैं, और सिंहवृत्ति से ही रहते हैं। कुछ सिंह वृत्ति से आने हैं किंतु बाद मे शृगाल वृत्ति अपना लेते है। कुछ शृगाल वृत्ति से आते है, किंतु बाद मे मिह वृत्ति अपना लेते है । कुछ शृगाल वृति लिए आते है और शृगाल वृनि से ही चलते रहते है । २५ जो अपने प्राप्त हुए लाभ मे मतुष्ट रहता है, और दूसरो के लाभ की इच्छा नही रखता, वह सुखपूर्वक सोता है (यह सुख-शय्या का दूसरा पहलू है) २६. श्रमणोपासक की चार कोटियां हैं दर्पण के समान-स्वच्छ हृदय । पताका के समान-अस्थिर हृदय । स्थाणु के समान-मिथ्याग्रही । तीक्ष्ण कटक के समान-कटुभापी । २७. कुछ मनुष्य ऐसे होते हैं जो सिर्फ अपना ही भला चाहते है, दूमरो का नहीं । कुछ उदार व्यक्ति अपना भला चाहे विना भी दूसरो का भला करते हैं। कुछ अपना भला भी करते है और दूसरो का भी। और कुछ न अपना भला करते हैं और न दूसरो का । कभी-कभी अन्धकार (अज्ञानी मनुप्य मे) मे से भी ज्योति (मदाचार का प्रकाश) जल उठती है। और कभी कभी ज्योति पर (ज्ञानी हृदय पर) भी अन्धकार (दुराचार) हावी हो जाता है। मेघ की तरह दानी भी चार प्रकार के होते हैकुछ बोलते है, देते नही । कुछ देते हैं, किंतु कभी वोलते नही । २६. मघका
SR No.010614
Book TitleSukti Triveni Part 01 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1968
Total Pages813
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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