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________________ सूक्ति कण दो सौ सत्तानवे ८. अन्धे और वहरे अर्थात् सत्य के दर्शन एवं श्रवण से रहित व्यक्ति ज्योति पथ से भ्रष्ट हो जाते हैं । दुष्कर्मी व्यक्ति सत्य के मार्ग को पार (तय) नहीं कर सकते । ६. आओ, मौत के निशान को मिटाते हुए मामो । १०. आओ, आगे बढें, नाचें और हंसें । ११. मेरे मन की भावना पूर्ण हो । १२. हे दिव्य आत्माओ | क्या हुआ यदि यह नीचे गिर गया है, तुम इसे फिर ऊँचा उठायो, उन्नत करो। १५. भलाई, मानो, सूर्य को आँख है । १४ मेरा शास्त्राध्यन मुझ में खूब गहराई से प्रतिष्ठित होता रहे । १५. अभ्युदय के मार्ग को पहचानने वाले बनो। १६. यह लोक देवताओ को भी प्रिय है । यहाँ पराजय का क्या काम ? १७. मैं (आत्मा) सब से बढ़ कर महिमा वाला हूँ। १८. यह (जीवन) अमृत को लदी है । इसे अच्छी तरह मजबूती से पकडे रखो। १६. मैं मधु (मिठास) को पैदा करूं', मैं मधु को आगे बढाऊँ ।
SR No.010614
Book TitleSukti Triveni Part 01 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1968
Total Pages813
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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