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________________ उपनिषद् साहित्य की सूक्तिया एक सो.तिरानवे ४. जो अन्तनिरीक्षण के द्वारा सब भूतो (प्राणियो) को अपनी आत्मा मे ही देखता है, और अपनी आत्मा को सब भूतो मे, वह फिर किसी से घृणा नहीं करता है। ५. जिस ज्ञानी के ज्ञान मे सब भूत आत्मवत् होगए हैं, उस सर्वत्र एकत्व के दर्शन करने वाले समदर्शी को फिर मोह कसा, और शोक कसा? ६. जो अविद्या अर्थात् केवल भौतिकवाद की उपासना करते हैं, वे गहन अन्धकार मे जा पहुँचते हैं । और जो केवल विद्या अर्थात् अध्यात्मवाद में ही रत रहने लगते हैं, सामाजिक दायित्वो की अवहेलना कर बैठते हैं, वे उससे भी गहरे अन्धकार मे जा पहुंचते हैं। ७. विद्या-ज्ञान तथा अविद्या-कर्म इन दोनो को जो एक साथ जानते हैं, वे अविद्या से मृत्यु को-अर्थात जीवन के वर्तमान सकटो को पार कर जाते है, और विद्या से 'अमृत' को-अर्थात् अविनाशी आत्मस्वरूप को प्राप्त करते हैं। ८. जो असभूति (अ+स+भूति) अर्थात् व्यक्तिवाद की उपासना करते हैं, वे गहन अन्धकार मे प्रवेश करते है । और जो समूति अर्थात् समष्टिवाद मे ही रत रहते हैं, वे उससे भी गहन अन्धकार मे प्रवेश करते है । है जो संभूति (समष्टिवाद) तथा असंभूति (व्यक्तिवाद)-इन दोनो को एक साथ जानते हैं, वे असमूति से (अपना भला देखने की दृष्टि से) मृत्यु को, वैयक्तिक संकट को पार कर जाते हैं । और सभूति से (सबको भला देखने की दृष्टि से) अमृतत्व को-अर्थात् अविनाशी आनन्द को चखते हैं।
SR No.010614
Book TitleSukti Triveni Part 01 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1968
Total Pages813
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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