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________________ आरण्यक साहित्य को सूक्तिया एक सो पिचहत्तर फलो से होन केवल सूखा हूँ। अधं का ज्ञाता हो समग्न कल्याण का भागी होता है । और यन्ततः ज्ञान के द्वारा सब पापो को नष्ट कर नाफ (दुःखो से रहित स्वर्ग या मोक्ष) प्राप्त करता है । १६ हे सरस्वती (मानशक्ति) । तू मुझे सुख देने वाली हो, तुझमें कोई छिद्र न दिखाई दे। २०. मानव जाति का कल्याण हो । २१. यह भूमि उपकारी होने से हजारो-लाखो लोगो के द्वारा अभिनन्दनीय है। २२. यह भूमि प्राणियो को जन्म देने वाली है, मत जाया है और आकाश वृष्टि आदि के द्वारा पालन करता है, अति पति है । २३. जल मे मल मूत्र नही करना चाहिए, थूकना नही चाहिए और न नंगा होकर स्नान हो करना चाहिए । २४. उठो, मत सोये पठे रहो। २४. प्रमादी दुराचारी व्यक्ति को अध्ययन नही कराना चाहिए । २६. तपस्वी पवित्र होता है। २७. ब्रह्म होता हुआ पुरुष अवश्य ही ब्रह्म को प्राप्त करता है। २८. असत्य से जुगुप्सा (घृणा) रखनी चाहिए । -कृ० त० आ० के समस्त टिप्पण सायणाचार्यविरचित भाष्य -अंक क्रमश. प्रपाठक तथा अनुवाक के सूचक है।
SR No.010614
Book TitleSukti Triveni Part 01 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1968
Total Pages813
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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