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________________ ऋग्वेद को सूक्तियां तेईस ६३ मुझे मित्र के पथ (जिस व्यवहार से अधिक से अधिक मित्र प्राप्त हो) से चलना चाहिए। ६४. द्रोह न करने वाले देव (अच्छे साथी) ही ससार मे अभ्युदय प्राप्त करते हैं। ६५. हे दुःख से मुक्त करने वाले रुद्रो । हम भी तुम्हारे जैसे ही जनता को दुख से मुक्त करने वाले रुद्र हो जाएं। ___६६ अच्छे संस्कारो को नष्ट न करो। ६७. बुद्धिमान अपने मन और बुद्धि को सभी प्राप्त कर्मों मे ठीक तरह नियोजित करते हैं। ६८. हम पुत्र पोत्रादि अच्छे स्वजनो एव परिजनो के साथ सौ वर्ष तक प्रसन्न रहे। ६६ हम सैकड़ो हजारो लोगो को तृप्त करने वाला अन्न प्राप्त करें । १००. मरणशील नश्वर शरीरो मे अविनाशी अमृत-चैतन्यज्योति का दर्शन करो। १०१. जिस प्रकार सूर्य मे प्रकाशमान तेज समाहित है उसी प्रकार मानव मे कर्म समाहित है। १०२. व्रत-विरोधी को व्रतो से ही अभिभूत (प्रभावित) करना चाहिए । १०३. इन्द्र को न वर्प क्षीण ( जर्जर ) कर सकते हैं, और न महीने तथा दिन हो। १०४. गाय ही मेरा धन है, इन्द्र मुझे गाय प्रदान करें।
SR No.010614
Book TitleSukti Triveni Part 01 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1968
Total Pages813
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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