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________________ चार ७ तपरिणाय मेहावी, इया रिंग गो, जमह पुव्वमकासी पमाए । ち जे ग्रज्झत्थ जारणइ, से बहिया जागइ । जे बहिया जारण से ग्रज्झत्थं जागइ | एय तुलमन्नसि । 8 जे गुणे से श्रावट्टे, जे आवट्टे से गुरणे । १० श्रातुरा परितावेति । ११ अप्पेगे हिसिसु मे त्ति वा वहति, अप्पे हिंसति मे त्ति वा वहति, अप्पे हिंसिस्सति मे त्ति वा वहति । १२ से ग हासाए, रण कीड्डाए, ग रतीए, ग विभूसाए । १३. ग्रतर च खलु इम सपेहाए, धीरे मुहुत्तमवि गो पमायए । १४ वो ग्रच्चेति जोव्वरण च । सूक्ति त्रिवेणी ०५. प्रणभिक्कत च वय सपेहाए, खरण जारणाहि पडिए । १६ र ग्राउट्टे से मेहावी खरसि मुक्के | - ११११४ - १/१1४ - १।११५ - १1१1६ - १1१/६ - ११२११ - ११२११ - १/२/१ - ११२/१ --११२/२
SR No.010614
Book TitleSukti Triveni Part 01 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1968
Total Pages813
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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