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________________ चूर्णिसाहित्य की सूक्तिया २२. रागद्वेष का त्याग ही समावि है । २३ सुख से ( आसानी से ) सुख नही मिलता । २४. केवल निदान ( रोगपरीक्षा) हो रोग को चिकित्सा नही है । २५ कर्मों से डरते रहने वाले प्राय कर्म ही बढाते रहते हैं । २६ जिन के पास ज्ञान का ऐश्वर्य है, उन साधु पुरुषो को, और क्या ऐश्वर्य चाहिए ? दो सौ पन्द्रह २७. वाहर मे शय्या पर सोता हुआ भी साधु, ( अन्दर मे जागृत रहने से ) साधु ही है, असाधु नही । २८ साधक स्वास्थ्य रक्षा के लिए ही सोता है, क्यो कि निद्रा भी बहुत बड़ी विश्रान्ति है । २६ अग्नि की ज्वालाओ से जलते हुए घर में सोए व्यक्ति को, यदि कोई जगा देता है, तो वह उसका सर्वश्रेष्ठ बंधु है । ३०. अकुशल मन का निरोध और कुशलमन का प्रवर्तन --- मन का सयम है । ३१. साधु को सागर के समान गभीर होना चाहिए । ३२ मलिन वस्त्र रगने पर भी सु दर नही होता । ३३ राग द्व ेष से रहित साधक वस्तु का परिभोग ( उपयोग ) करता हुआ भी परिग्रही नही होता । ३४ क्रोध से क्षुब्ध हुए व्यक्ति का सत्य भाषण भी असत्य ही है ।
SR No.010614
Book TitleSukti Triveni Part 01 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1968
Total Pages813
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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