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________________ २० आ रहे है, उस समय ओझल रहे या हो गए। बहुत से जान-बूझकर भी सक्षेप की दृष्टि से छोड़ दिए गए। अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रथो के सुभाषित इसलिए भी नही लिए जा सके कि उनका मूल शुद्ध सस्करण प्राप्त नही हुआ, और जिस घिसे-पिटे अशुद्ध रूप मे वे उट्ट कित हो रहे हैं, वह मुझे स्वीकार्य नही था । समयाभाव एव अस्वस्थता के कारण भी अनेक ग्रथों के सुभाषित इसमे नही आ सके । सम्भव हुआ तो इन सब कमियो को अगले संस्करण के समय दूर करने का प्रयत्न किया जाएगा । इन सब कमियो के वावजूद भी मेरा विश्वास है कि यह सकलन पूर्ण भले न हो, परन्तु अब तक के सूक्तिसाहित्य मे, पूर्णता की ओर एक चरण अवश्य आगे बढा है । गति के लिए अनन्त अवकाश है, और गतिशीलता मे मेरी निष्ठा भी है । आशा करता हूँ, इस दिशा में मैं भी गतिशील रहूँगा तथा इससे प्रेरित होकर मेरे अन्य पाठक और जिज्ञासु भी । - एक बात और । सूक्तित्रिवेणी का प्रथम एव द्वितीय खण्ड प्रकाशित हुए लगभग एक वर्प हो चुका है, तृतीय खण्ड भी अभी छप चुका है और यह सम्पूर्ण खण्ड अब एकाकृति मे पाठको के समक्ष आ रहा है । इतने बडे सकलन मे उसकी विषयानुक्रमिका आदि के लिए समय तो अपेक्षित था ही, साथ ही अनेक ग्रथो व सहयोगियो का सहयोग भी । सवको अनुकू नता के बल पर यह सस्करण पाठको के हाथो मे सौपते हुए मुझे आज अपने श्रम के प्रति आत्मतृष्टि अनुभव हो रही है । १-१०-६८ विजयादशमी जैन भवन, आगरा | - उपाध्याय अमर सुनि
SR No.010614
Book TitleSukti Triveni Part 01 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1968
Total Pages813
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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