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________________ ६२ मेरे दिवगन मित्रों के कुछ पत्र अच्छी तरह हो सकता है । यदि इस दृष्टि से आज तक प्रयत्न किया जाता तो शिखरजी आदि के विषय मे बहुत कुछ लाभ हो सकता था । मूर्ति के बारे मे एक खास विचारणीय बात यह है कि श्वेताम्बर सम्प्रदाय की मूर्ति भी नग्न हो सकती है इसलिए जितनी नग्न मूर्तियाँ हैं वे सब दिगम्बर आम्नाय ही की है, ऐसा जो पुरातत्व वेत्ताओ का सामान्य अभिप्राय बना हुआ है, वह सर्वथा स्वीकारणीय न समझना चाहिए | श्री चन्दा को ये बातें पूरी तरह समझानी चाहिए नही तो उनका अभिप्राय भी निभ्रान्त न होगा । 3 सो ये बातें विचार कर उचित समझें तो मुझे आप बुला सकते हैं मुझे आने में कोई आपत्ति नही है । आने जाने का दो आदमियो के खर्चे का प्रबन्ध आपको करना होगा । अगर मेरा आना हुआ तो मैं यहा के पुस्तकालय के लिए आपका सग्रह भी देख सकूँगा । पत्र का उत्तर चिट्ठी या तार से जैसा योग्य समझें वैसे दें । शुभमस्तु । : (१४) भवदीय जिन विजय Calcutta 12-11-1925 परम् पूज्यवर आचार्य महाराज ! श्रीमान मुनि जिनविजय जी महोदय की पवित्र सेवा में सविनय वंदनान्तर निवेदन है कि मेरे राजगृह से लौटने पर आपकी ता.' १ ४-११-२५ की कृपा लिपि प्राप्त हुई और आद्योपान्त पढकर विशेष
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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