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________________ बाबू श्री पूर्णचन्दजी नाहर के पत्र मुझे कलकत्ता आने के लिए आमन्त्रित किया उसके उत्तर में निवेदन है कि संघ की सेवा के लिए जो कोई ओजा संघ के नायक जन करे उसे गिरोधार्य करना संघ के प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है और इस दृष्टि से यदि आप और श्रीमान रायकुमार सिंहजी जैसे सब हितैषी अग्रजनो 'की इच्छा मुझे वहा बुलाने की है तो मैं उचित समर पर उपस्थित होना अपना कर्तब्य समझता हूँ। विशेप ज्ञातव्य इतना है कि प्रथम तो मैं स्वयं उन विवार वाले मनुष्यो मे से हूँ जो साम्प्रदायिक क्लेशो को धर्म और देश की उन्नति के 'वाधक समझते है। इसलिये मैं वैसे किसी भी कार्य मे अपना योग देना 'नहीं चाहता जिससे धर्म के परिणाम मे हानि होती हो । दूसरी बात यह है कि मैं इतिहास का विद्यार्थी हूँ, इसलिए शुद्ध ऐतिहासिक तत्त्व का अनुसरण करके ही मेरी अल्लस्वल्ल बुद्धि मे जो कुछ तथ्य मालूम दे मैं उसको प्रकट कर सकता हूँ । सम्प्रदाय के या मत के वशीभूत होकर मैं असत्य या असत्य मिश्रित कोई विचार प्रकट नहीं करना चाहता। - ये दो सिद्धान्त जो मेरे जीवन के आदर्शभूत है उनका पालन करते हुए मैं आपकी जितनी सेवा बजा सकू उतनी बजाने के लिये तैयार हूँ। ये बाते मैं इसलिए आप से लिखना चाहता हूँ कि मेरे विचारो का (पीछे से कोई विपर्यास न करे और दुरुपयोग भी न करे । मैं सदैव सत्य हो प्रकट करूँगा और सत्य ही का समर्थन । - अव प्रस्तुत:-राजगृही मे किस बारे में मुकदमा चल रहा है इसका मुझे पूरा हाल मालूम नही है । उस स्थान को जितनी बारीकी से 'देखना चाहिए उतना मैंने देखा भी नहीं है इसलिए मैं आपको इस विषय मे कितना मददगार हो सकता हूँ यह मै नही जानता । हाँ, इतना मुझे मालूम है कि श्वेताम्बर दिगम्बर की प्राचीनता और मूर्ति आदि 'के विपय मे मै आपको यथेष्ट प्रमाण और मेरे विचार वतला सकता हूँ। दिगम्बरो की अपेक्षा श्वेताम्बरो के पक्ष में बहुत कुछ साहित्य और :शिलालेखादि प्रमाणभूत है, जिससे श्वेताम्बरो के कथन का समर्थन
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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