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________________ Yoga ३८ मेरे दिवंगत मित्रो के कुछ पत्र करके, वे उत्पन्न करने के वास्ते योजना करना चाहिये । पूने ही में क्यो नही, आपकी नजर के नीचे दस बीस ऐसे विद्यार्थी विद्यार्जन के वास्ते रहे कि जो कमसे कम मेट्रिक पास हो व उनकी दूसरी भाषा संस्कृत हो, उनको यदि प्राकृत संस्कृत का शिक्षण व केवल अंग्रेजी भाषा का शिक्षण पाच सात बरस नई पद्धति पर दिया जावे तो उम्मीद है कि वे धर्म सेवा व समाज अच्छी तरह बनाकर धर्मोन्नति कर सकेंगे । मात्र उनके शिक्षण की योजना नये तर्ज पर होना चाहिये । शास्त्रियो का तर्ज छोड़ देना चाहिये । ७. ऐसे लड़को को शिक्षण देने के वास्ते योरोप से किसी प्राकृत संस्कृत जानने वाले विद्वान को बुलाना चाहिये, क्योकि जिस पद्धति से योरोप के विद्वान काम करते है वह पद्धति हाल अपने इधर के विद्वानो को बरावर मालूम नही है । एक भी उस पद्धति से लड़का सीख कर तैयार हो जावे तो फिर और भी लडके वगैरह योरोप के विद्वान की सहायता से तैयार हो सकेगे अगर ग्रेजुएट विद्यार्थी मिल जायें तो बहुत ही उत्तम होगा । ८. शिक्षण क्रम (धार्मिक) की योजना बराबर होनी चाहिये । वर्गर शिक्षण क्रम के लडको पर बरावर असर नही होता, इस वास्ते लड़को को पढ़ाने के वास्ते धार्मिक पुस्तक माला की रचना होना चाहिये जैनों की धार्मिक पाठशाला सैकड़ो हैं, परन्तु बताना अच्छा नही होगा । सवव यह है कि शिक्षण माला अच्छी नही है । सो एक अच्छी नई पद्धति पर शिक्षण माला तैयार होकर वह हर धार्मिक पाठशाला में शुरू करदी जावे । ६. वैसे ही एक प्राकृत शिक्षण माला को बहुत जरूरत है । अपने शास्त्र प्राकृत मे होने से प्राकृत शिक्षण की तजवीज होना बहुत जरूरी है जैसे भंडारकर की संस्कृत मार्गोपदेशिका है वैसे प्राकृत मार्गोपदेशिका तैयार होना चाहिये । प० बेचरदास ने बनाई है परन्तु वह समाधान कारक नही है वास्ते एक मार्गोपदेशिका बनवाना चाहिये ।
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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