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________________ श्री केशरी चन्दजी भंडारी के पत्र २. जैनों में जो जो आदर्श रूप साधु संत हुए है व गृहस्थाश्रमी हुए हैं, उनके चरित्र सरस परन्तु, असर कारक भाषा में लिखवाकर चारो ओर प्रसिद्ध करना चाहिये। इस कार्य से चारित्र्य पर अच्छा. असर होगा। ३. जनों में अच्छी अच्छी और बोधप्रद जो जो कथा है उनका भी अनुवाद हिन्दी में करवा कर उनका प्रसार होना चाहिये। ४. ऐतिहासिक विषय की अपने मे जबरदस्त खामी है । सो इस विषय को हाथ में लेकर अपना प्राचीन इतिहास प्रसिद्ध करना चाहिये और बगैर इतिहास के स्वधर्माभिमान व स्वदेशाभिमान उत्पन्न होना कठिन है। ५. अपने ग्रन्थ तत्त्वज्ञान से भरपूर है अपने पूर्वजों ने अपूर्व शोध आत्मिक शक्ति के द्वारा लगा रखे हैं-पानी के जीव, वनस्पति के जीव, पत्थर आदि के जीव सम्बन्धी अपने में जो विचार किया है वह किसी भी धर्म वालो ने नही किया है व प्रोफेसर बोस' सरीखे तत्त्वज्ञों के शोधो से अपने ऋषि प्रणीत वचनो की पूर्ण सत्यता प्रत्यक्ष नजर आने लग गई है। इस वास्ते अपने धर्म तत्वो का विचार सायंस की दृष्टि से होना आवश्यक है । अंग्रेजी पढे हुए परन्तु जैन कुल में उत्पन्न हुए लोक धर्म से बिल्कुल ही वंचित रहते हैं । इसका कारण यह है कि अंग्रेजी विद्या से विचार स्वातंत्र्य जो उत्पन्न होता है व खोज करने की बुद्धि उनमे उत्पन्न होती है उसका समाधान करने के वास्ते कोई भी धर्म ग्रन्थ नई पद्धति पर हिन्दी या अग्रेजी भाषा में अपने में लिखा हुआ नही है । इस वास्ते जडवाद से सामना करने में लिये ऐसे सायंस के पाये पर लिखे हुए ग्रन्थ की आवश्यकता है। ६. अपने में प्राकृत व संस्कृत के विद्वान नई पद्धति के नहीं हैं। इस वास्ते वैसे तैयार करने की कोई संस्था निकालनी चाहिये। धर्म प्रचार के वास्ते अच्छे व्याख्यानकार अच्छे लेखक व अच्छे शिक्षक इनकी जरूरत है । ये कैसे पैदा होवे, इसका विचार आप जैसे विद्वानो को
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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