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________________ मेरे दिवगत मित्रो के कुछ पत्र ब्रह्मानन्द को अनुभव करने का पूर्ण अधिकारी बन जाय । आपका सेवक देवेन्द्र प्रसाद जैन पत्रांक ४ श्री परम पूज्य महाराज जी नमस्ते पडित जुगल किशोर जी का पत्र अवलोकनार्थ भेजता हूँ। मेरा स्वास्थ्य कुछ खराब हो गया है कोई चिन्ता की बात नही । आप इतने दूर है और मैं भी इतने फासले पर हूँ कि आपकी मै कुछ भी यथेष्ठ सेवा चाकरी करने से मजबूर हूँ । __ प्रथम अंक तो आप जैसे तैसे पूना मे छपाले । फिर अहमदावाद मे मनसुख भाई के प्रेस मे छपेगा । श्री पावापुरी जी की ५०० तस्वीर छपकर मेरे पास आ गई, भेज दूंगा। चित्तौडगढ़ का स्तम्भ वाला फोटो भेज दे, तो उसका भी ब्लोक बनवा कर भेज दू । क्या आपने लेटर पेपर आदि छपवा लिया । मेम्बर ग्राहक बनाने का प्रयन्न बहुत कर रहा हूँ। लोगो की दृष्टि जैन साहित्य, जैन इतिहास की तरफ विल्कुल नही-खेद है । अपने जैनी भाई लोग तो द्वेष करते हैं। कोई चिन्ता नही जब तक तन में प्राण है सेवा से मुंह नही मोडना है । जितनी शक्ति है लगायी जायगी। अब लिखें कि उस प्रात मे सभासद ग्राहक धड़ाधड़ बन रहे है अथवा नही कोई नवीन समाचार लिखें। आपका सेवक देवेन्द्र प्रसाद नोट:-जैन साहित्य सशोधक के प्रथम अंक मे वीर निर्वाण भूमि
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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