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________________ श्री देवेन्द्रप्रसादजी जैन के पत्र। २३ प्रारम्भ करता हूँ, हिन्दी-भाग का सम्पादन आप करें-अग्रेजी भाग का आपका सेवक करेगा-नियमादि जो कुछ आपने बनाया हो भेज देंगुजराती, हिन्दी, अग्नेजी तीन भाषामो मे नियमादि प्रकाशित करना चाहिये-प्रथम अक के सम्पादन का कार्य प्रारम्भ कर देना ठीक हैप्रथम अंक कब निकलता है । यह भी ठीक करलें । कोई उत्तम तिथि पर इसका प्रकाशन होना चाहिये । पहले अंक की ५०० कापी छापी जाय-साइज सरस्वती पत्र का उत्तम जचता है--पूना मे किसी उत्तम प्रेस द्वारा ठीक समय पर प्रकाशन होता रहे । क्या मिस्टर शाह बंबई से आपकी सहायता के लिये आ गये ? उनको बुला लें, बम्बई मे इन्द्र विजय जी मिले थे-वह भी आप जैसा प्राचीन शिला लेखो का संग्रह छपा रहे है तथा हीर विजय सूरि का खुलासा वृतान्त गुजराती भाषा मे प्रकाशन करने मे लगे है । यह लोग अमूल्य समय को नष्ट कर रहे हैं । मान बड़ाई लक्ष्य है-राग द्वेष इर्षा भाव मे लिप्त हैं-जैन समाज का अभाग्य कि उसके नेतागन इस प्रकार के जीवन को आनन्दमय जीवन समझते है। मेरे योग्य सेवा चाकरी लिखें ५० ब्रजलाल जी, रमणिक लाल जी को मेरा जय जिनेन्द्र चरणो का सेवक देवेन्द्र प्रसाद पत्रांक २ आरा जैन साहित्य संशोधक समाज आवेदन पत्र खूब उत्तमता से लिखा है । इसका असर अच्छा होगासफलता निकट दीखती है। -सतत प्रयत्न करूंगा-आप अब एक काम पत्र-संपादन के कार्य मे समस्त समय को व्यय करें, मैं मेम्बरादि प्रचार कार्य खूब जोरो से करने लगा हूँ। पत्र का साइज ठीक इसी प्रकार का मै भी चाहता था-इसी साइज मे हमलोग अपनी सारी पुस्तकादि भी निकालेंगे ।
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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