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________________ श्री राजकुमारसिंहजी के पत्र १६ डॉ० गुणे की एक चिट्ठी मिली थी। मैंने लाल भाई को बतलाई थी। इनकी और मेरी भेंट हुई नहीं है। समझता हूँ कि ऐसा जरूर का काम नहीं होगा। राजकुमार की वन्दना अवधारयेगा। (११) Mookim Niwas, Calcutta Camp-Bombay Date 10-8-1920 श्रीमान मुनिमहाराज श्री जिनविजय जी, मु० पूर्ण आपका ता० ३१ का लिखा हुआ पत्र मिला है। मैं कुछ छः सात दिन के लिये वाहर गाम गया था। जिससे जवाब लिखने मे लेट हुआ हूँ। मैंने इन्दौर में कई आदमियों से अपने साहित्य संशोधक और इन्स्टीटयूट के लिये परिचय करवाया है। आप इन दो आदमियो को संशोधक की एकेक प्रति भेज दीजियेगा। मैं अभिलाषा रखता हूँ कि वह अपना सशोधक का लाइफ मेम्बर होवेंगे। इन साहबो का नाम--१. विनोदीलालजी बालचंदजी इन्दौर २. चम्पालाल जी माधव लाल जी इन्दौर (छावणी) इन भाई साहवों को प्रकाशक द्वारा लिखा दीजिएगा कि वह और ग्राहकों की बढती करें। और मेरे नाम का परिचय दीजियेगा । लाइफ मेम्बर का अनुरोध करियेगा। ____ लाल भाई ने इनका और मेरा रु० १००-१०० जमा संशोधक के लिये करवाया होगा। लाल भाई का यहाँ पे आने वाद इस्टीट्यूट और संशोधक के लिये और प्रयत्न करेंगे। पहले भी कई वार याद करा चुके । हमारा पर्युषण कल से शुरू होता है और मैं यहाँ पर्युषण तक रहूंगा। फिर चला जाऊँगा । कृपा रखियेगा। उनम कार्य हो रहे हैं।
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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