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________________ १२] मेरे दिवंगत मित्रों के कुछ पत्र के भागी हैं। मेरे पास भी उनका पत्र आया था, जिसका उत्तर आज उनको दे दिया गया है। इन महाशयो को मेरी तरफ से बहुत बहुत धन्यवाद दीजियेगा और हीरजी खेतसी जे० पी० ने जो कृपा करके पच्चीस हजार रुपये का वचन दिया सो शीघ्र ही प्राप्त हो सकेगे और उस हॉल का नाम "खेतसी खीयसी हॉल" और ग्रन्थों के सूचीपत्र तैयार करने का लिखा सो आपकी सम्मति अत्युत्तम है, ऐसा ही होना ही चाहिये और गेस्ट हाउस के लिये लिखा सो वह रकम शनैः शनैः इकट्ठी हो जायेगी। इस काम में आप इतना उद्योग करते हैं सो इसकी सराहना कब तक की जाय ! आप जैसे सत्पुरुषों का यही कर्तव्य है और मैंने जो कुछ किया है उनमें विशेषता ही क्या है। प्रत्येक पुरुष अपनी इच्छा की सफलता व प्राप्ति का प्रयत्न करता है और स्कालर शिप के बारे मे वह कार्य अति आवश्यक है। मगर पहले यह पचास हजार रकम पूरी होनी चाहिये। समय ऐसा है कि एक हजार रुपये की रकम देते भी दिल दुखाते हैं सो प्रथम तो दस हजार की पूर्ति होना जरूरी है । सो मैंने बम्बई में चि० राजेन्द्र कुमार सिंह को लिख दिया है कि लालचन्द या गुलाबचन्द को साथ लेकर यह रकम पूरी करने का प्रयत्ल करो। वरना पूर्व से चेष्टा की जावेगी और सब रकम हीरजी भाई के पास जमा करादी जायेगी और हीरजी भाई को यह भी लिख दिया है कि आपके पास जरूरत माफिक रकम भेजते रहे । आशा है कि वह ऐसा ही करेंगे। दो स्कालर शिप तो जरूर चलेंगे जब तक फण्ड होने मे जरूरत होगी तब तक ६००/ साल से चलेगा। फिर मैं दीवाली तक पूने आकर देख ही लूगा और यह काम भी जारी हो जावेगा। इसमे प्रयल करने की जरूरत नहीं हैं। अन्त मे आपको एक बार और हार्दिक धन्यवाद देता हुआ मैं अपने
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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