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________________ श्री राजकुमारसिंहजी के पत्र [११ रखना चाहता हूँ और इसके मुखियो से मेरी पहिचान है नही सो कृपा कर भेजिएगा। ये काम देखने से तो रुका रहता यहां वाले काम से छुट्टी लेते जव बनता। Camp-Ahar Thakurs house, Jodhpur . Dated 18-8-1918 श्री पूना शुभ स्थाने सर्व ओपमा सर्व गुण निधान परम उपकारी मुनि महाराज श्री जिन विजयजी महाराज की सेवा मे लिखी जोधपुर से राजकुमार सिंह का विनय पूर्वक वन्दना अवधारिएगा। यहाँ धर्म प्रसाद से सव कुशल हैं। आपका सुग्व साता चाहते है। आगे कृपा पत्र आपका पूने से ता० ७ का मिला। पढने से बहुत प्रसन्नता हुई और आपने जो रुपया इकट्ठा करने का लिखा इसके लिये मैं कलकत्ते जाकर बन्दोवस्त करने का प्रयत्न करूंगा और आपने लिखा कि वीरचन्द कृष्ण जी और परमानन्द दास रतन जी ने दस-दस हजार रुपये देने का वचन दिया था परन्तु वह केवल मकान बनाने के लिये था और वह भी तीस हजार शेष इकट्ठा हो जाने पर और सब तीस हजार रुपये न होने पर अपने वचन को खीच लिया सो बड़े शोक की बात है। परन्तु ईश्वर की दया से आशा की जाती है कि शनैः शनै. रुपया शीघ्र ही इकट्ठा हो जाएगा। गेस्ट हाउस में उनसे लेकर उनके नाम पर बनवाने का प्रयत्न करिये। देश सेवा अति उत्तम है अगर प्राप्ति की सभावना होवे तो इसकी सफलता के हेतु अपने को योग्य बनाकर धैर्यता और नीति पूर्वक दीर्घ दृष्टि से कार्य करने मे मैं भी सहानुभूति प्रकट करता हूँ वर्ना जो तीर्थ रक्षा आदि मे सहायता मिलती है, उसमे हर्जा हो सके है और आपके कामो मे सहायता देने वाले डा० बेलवलकर और गुणे महाशय धन्यवाद
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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