SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६ मेरे दिवंगत मित्रो के कुछ पत्र -भी बड़ी तीव्रता थी । इन्होने छोटी बड़ी अनेक पुस्तकें लिखी है । हिन्दी भाषा के ये उत्कट प्रेमियों में से थे । मेरा इनसे परिचय उस असहकार आदोलन के प्रारम्भ ही से हो गया था । मैं जब पूना में रहता था और भान्डारकर ओरियन्टल सर्च इन्स्टीटयूट तथा भारत जैन विद्यालय आदि के कामों मे लगा हुआ था तभी ये एक बार पूना में मुझ से मिलने चले आये। मैंने इनके लिखे हुये अनेक हिन्दी लेख सरस्वती पत्रिका में पढ़े थे और अमेरीका में जाकर इन्होंने किस प्रकार भारतीय सस्कृति और भारतीय विचारो का प्रचार किया, इसकी कुछ जानकारी मुझे थी । प्रथम मिलन में ही इनका और मेरा स्नेह संबन्ध सा हो गया था । 'पूना में मैंने इनके कुछ सार्वजनिक व्याख्यान भी करवाये । यो ये कुछ दिन अहमदाबाद में मेरे निवास स्थान पर भी आकर रहे थे । 1 मैं जब जर्मनी गया तो उस समय ये भी अपनी आखो का इलाज - कराने निमित्त ऑस्ट्रीया गये थे । वहा से फिर ये मुझे मिलने बर्लिन चले आये । बर्लिन मे कई दिनो तक ये मेरे साथ रहे । प्रसंगवश बर्लिन से मेरा भारत आना हो गया, तब भी ये वही रहे। यहां आकर मैं तो जेल चला गया और फिर पत्र व्यवहार आदि सब छूट गया । जेल से छुटकारा पाने पर में, गुरुदेव श्री रवीन्द्रनाथ की इच्छानुसार शान्तिनिकेतन, चला गया । श्री सत्यदेवजी भी भारत चले आये । मेरा शान्तिनिकेतन चले जाना जानकर इनकी इच्छा हुई कि ये भी कुछ समय के लिये शान्तिनिकेतन आकर मेरे साथ रहे। बाद में इन्होने ज्वालापुर में सत्य निकेतन नाम का अपना स्वतन्त्र स्थान बनाया | इनके सस्मरण बहुत विस्तृत है परन्तु उनको यहां देने का उतना अवकाश नही है । इनके पत्रो के उल्लेखों से ज्ञात होगा कि = मेरे साथ इनकी कितनी घनिष्ट मित्रता थी । ११ - इम पत्र संग्रह के अन्त मे स्व. महापण्डित श्री राहुल
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy