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________________ किंचित् प्राक्कथन १५ हिन्दुस्तान हाउस में तथा अन्यत्र जब विचार गोष्ठियाँ होती थी। तव ये मेरे दुभापिये के रूप में बहुत उत्तम ढंग से काम किया करते थे। वलिन युनिवर्सिटी में कुछ छात्रो को हिन्दी की शिक्षा देने का भी काम ये किया करते थे। प्रायः एक वर्ष तक मेरा बलिन मे रहना हुआ। ये अपना बहुत-सा समय मेरे साथ बिताया करते थे और जर्मन लोगो तथा जर्मन संस्कृति के विपय में मुझे विविध प्रकार की जानकारी दिया करते थे। ' - इस प्रकार ये मेरे एक बहुत ही घनिष्ठ मित्र बन गये थे। मै जर्मनी से वापस भारत आया तब एक बहुत बडा मनोरथ साथ लेकर आया था। मेरी इच्छा थी कि महात्माजी से मिलकर जर्मनी मे। भारतीय सस्कृति एव मित्रता के विषय का कुछ ठोस आयोजन कियाजाय और उसमे डॉ राय का विशिष्ट स्थान भी था परन्तु भारत में। आये वाद महात्मा गाधीजी द्वारा चलाये गये मत्याग्रह आन्दोलन मे मैं लग गया और जर्मनी वापस जाने के बदले मुझे अग्रेजी सरकार की जेल मे चला जाना पड़ा। उसके बाद सयोग एव परिस्थितिया बदल जाने के कारण मुझे पुन. जर्मनी जाने का विचार स्थगित करना पड़ा और उसके साथ ही डॉ. राय के साथ किये गये मनोरथो का भी विलय हो गया। डॉ. राय के लिखे गये इन कुछ पत्रो मे इस विषय का थोडा बहुत परिचय मिलता है। इनके विशेष संस्मरण देने का यहा अवकाश नहीं है । १०-दसवा पत्र सग्रह सुप्रसिद्ध हिदी लेखक स्वर्गस्थ स्वामी । सत्यदेवजी परिव्राजक का है। स्वामीजी के विषय में विशेप लिखने की आवश्यकता नही है । वे देश के स्वतन्त्रता आन्दोलन के बहुत वडे सेनानी थे। महात्माजी ने जब सन् १९२० में असहकार आन्दोलन शुरु किया तो प्रारम्भ हो मे ये उसके एक प्रमुख समर्थक और प्रचारक बन गये थे। इनकी वाणी में बड़ा जोश था और कलम में
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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