SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 194
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मेरे दिवंगत मित्रों के कुछ पत्र विपय में मुझे ऐसी सामग्री भेजकर अथवा भिजवाकर जो किसी पुस्तक मे छपा न हो, मेरी सहायता कर सकते है ? भवदीय ताराचन्द राय Berlin=Wilmessdorf Hohen Zollerndamm 35 Dated 17-3-71 प्रियतम मुनिजी, ____ क्या मित्रता इसी को कहते हैं ? मैंने आपको इतने पत्र लिखे हैं। परन्तु आपने अभी तक कोई उत्तर नही दिया। क्या कारण है ? यदि मुझसे कोई अपराध हो गया हो तो क्षमा कीजिये । आपकी रिहाई का वृतात सुनकर मेरे हर्ष की सीमा नही रही। आप सब हाल लिखकर अनुगृहीत कीजिये । मैं आपके पत्र की वाट देखता रहूगा । आप यह पढ़कर अवश्य खुश होगे कि मैंने इस Winter Semester मे जर्मनी के नगरों और ग्रामो मे "महात्मा गांधी और भारतवर्प" पर पचास ध्याख्यान दिये है। कल वलिन के Sersing Hochschule में C. Z. Klot zel के बाद मैंने लेक्चर दिया था लोग चकित हो गये । यह ईश्वर की कृपा है । गतमास मे विश्व भारती के Asst. Director बाबू काली मोहन घोष यहाँ आए थे उनसे खूब वातें हुई। उत्तर शीघ्र दीजियेगा। . . आपका किंकर ताराचन्द राय
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy