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________________ १२० मेरे दिवंगत मित्रों के कुछ पत्र बड़े ही महत्व के हैं। आपका 'चामुण्डराज चौलुक्य नो ताम्रपत्र' नाम का लेख इतिहास प्रेमियो के लिये मनन करने योग्य है। पत्रिका आते ही मैंने उसे पढना शुरु किया और आपका लेख पूर्ण न होने तक मे उसे अपने हाथ मे अलग न कर सका, मैं तो उसमे तल्लीन ही हो गया । अन्य लेख मैं पढ रहा हूँ। उक्त ताम्रपत्र मे एक जगह गुप्त संवत् और एक जगह संवत् १०३३ दिया है। मेरी राय में गुप्त सवत् अशुद्ध पाठ है । ताम्रपत्र बडे ही महत्व का है। इसके सम्बन्ध में स्वर्गस्थ श्री केशवलालजी ध्रुव ने कुछ प्रश्न मुझसे पुछे थे, परन्तु उसके फोटो और अक्षांतर आप की कृपा से ही पढने को मिले। आबू के परमार राजाओं की जो वंशावली, वस्तुपाल के मंदिर की प्रशस्ति में मिलती है और जो कुछ असम्बद्ध वर्णन अन्य ऐतिहासिक ग्रन्थों में मिलता है उसकी संगति अव तक मिल नहीं सकती थी परन्तु देव योग से कुछ दिन पूर्व एक ताम्रपत्र का पहला पाठ मिल गया जिस से सारी बातें ठीक हो गई। इस का उपयोग मैंने अपने राजपूताने के इतिहास की पहली जिल्द के द्वितीय संस्करण में किया है। आपके "भारतीय विद्या" के लिये मैं उस पर एक लेख लिख कर भापकी सेवा मे भेजूगा । इन दिनो राजपूताने के इतिहास की चौथी जिल्द का पहला खण्ड जिसमें जोधपुर राज्य के इतिहास का पहला खण्ड प्रकाशित हुआ और उसकी पाचवी जिल्द के पहले खण्ड में बीकानेर राज्य के इतिहास का पहला भाग प्रकाशित हो गया है। ये दोनों पुस्तके आपके लिये तथा श्रीयुक्त जयचन्द्रजी विद्यालंकार एवं "भारतीय विद्या" के लिये भेजना है सो रेल्वे पार्सल द्वारा आपकी सेवा में भेजी जावेगी। कृपया यह सूचित कीजिए कि पार्सल कौन से रेल्वे स्टेशन के नाम पर भेजने से आपको आसानी से मिल सकेगी। इसका उत्तर शिघ्र भिजवावें ताकि पत्र मिलने पर पुस्तकें भेज दी जावे । इस समय मेरी उन ७७ वर्ष की है और वृद्धावस्था अपना प्रभाव दिखला रही है। चलना फिरना विशेष नही हो सकता ऐसे ही लिखना भी, क्योकि हाथ कांपता है। शरीर अस्वस्थ रहने के कारण विशेष
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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