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________________ पं. श्री गौरीशंकर, हीराचन्दजी भोझा के पत्र ११६ आशा है कि आप कृपा कर इस पत्र का उत्तर यथा सम्भव शीघ्र भिजवावेंगे | ई. स. १९१९ मे पठान निजाम खान नूर खान वकील की तरफ से "मिराते अहमदी" की पूरवरणी प्रकाशित हुई थी उसे भी देख लेने की आवश्यकता है । यदि हो सके तो उसे भी भिजवानें की कृपा करें नही तो इसी से काम चल जायगा । आपको बारम्बार कष्ट देकर आपका अमूल्य समय नष्ट कराने का मुझे वडा खेद है, परन्तु किया क्या जावे। जब बहुत ही आवश्यकता होती है आप को कष्ट देना पडता है । जिसके लिये मैं क्षमा प्रार्थी हूँ । रूपाहेली ठाकुर साहब के पौत्र एव भावि उत्तराधिकारी कुछ दिन पहले मेरे यहाँ आये थे । आपके प्रसग की बात निकलने पर उन्होने कहा कि वृद्ध ठाकुर साहब जिन विजय जी के दर्शन करने के बड़े उत्सुक हैं | आप उनको लिखें कि एक बार अवश्य रूपाहेली पधार कर दर्शन देवें । मुझे भी आपके दर्शनो की बड़ी लालशा है । विनयावनत गौरी शकर हीरा चन्द ओझा अजमेर म. म. रायवहादुर डॉ० गो ही. मोझा D. Litt. ताः २५ जनवरी १९३६ और 'भारतीय विद्या' श्री मान् मुनिवर श्री जिनविजयजी महाराज की पवित्र सेवा मे गौरीशंकर हीराचन्द ओझा का सादर प्रणाम । अपरच || बहुत दिनो बाद आपका ता: २२-१२-३८ का कृपा पत्र नाम के त्रैमासिक पत्र की पहली संख्या मिली मुझे वडा ही आनन्द हुआ । ववई का आपका कारण मैं आपको पत्र न लिख सका जिसके लिये क्षमा चाहता हूँ । । आमका पत्र पाने पर पत्ता मालुम न होने के 'भारतीय विद्या' नामक पत्रिका पढ़कर वडा ही आनन्द हुआ । वास्तव में यह विद्या का भण्डार ही है और इस संख्या मे छपे हुये लेख Www present the 24+ (१८) Jums
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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