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________________ स्व. रायबहादुर, महामहोपाध्याय पं. श्री गौरीशंकर, हीराचन्दजी ओझा के पत्र राजपूताना म्यूजियम ता० २५-६-२० मान्यवर मैं शारीरिक अस्वस्थता के कारण छुट्टी लेकर वाहर गया था ता० ११-६-२० को पीछा यहाँ लौट आया हूँ यहां आने पर आपकी भेजी हुई 'स्माइल्स सेल्फ हेल्प' के आधार पर लिखि हुई हिन्दी पुस्तक मिली जिसके लिए अनेक धन्यवाद । आज आपका ता० २१-६-२० का पोस्ट कार्ड और "जैन साहित्य संशोधक" पत्र का प्रथम अंक मिला। पैर में चोट आ जाने के कारण पीड़ा के साथ पड़ा हुआ होने पर भी साहित्य संशोधक का अंक बिना पढ़े न रह सका, यद्यपि आद्योपात तो अभी तक नही पढ़ा, परन्तु उसका बहुत अंश पढ़ लिया है। उसको पढ़ने से इतना आनन्द हुमा कि उसी वक्त स्वीकार पत्र लिखना निश्चय कर यह पत्र लिखा है । आपका संशोधक बड़े ही महत्व का पत्र है। जैन साहित्य की श्री वृद्धि के लिये यह अमूल्य रत्न है। इसकी और इसके संपादक मुनि महाराज श्री जिन विजय जी की जितनी प्रशंसा की जावे थोड़ी ही है। ईश्वर इस पत्र को चिरायु करे और यह जैन समाज और हिन्दी की जनता की बहुमूल्य सेवा वजाता रहे। मैं भी कभी कभी जैन शिला लेख मादि विषयो पर इसमे लेख भेजता रहूंगा। ___मैं इसको समालोचना नागरी प्रचारिणी पत्रिका में अवश्य करूँगा। मापने सुना होगा कि नागरी प्रचारिणी पत्रिका अब वह मासिक पत्रिका नही रही अव वह त्रैमासिक पत्रिका रहेगी और प्राचीन शोध सम्बन्धी पत्र होगा। मैं भी उसके चार सम्पादकों में से एक हूँ। पहली सस्या पांच-सात दिन में प्रकाशित हो जायगी। दूसरी संख्या की सामग्री प्रेस में जा चुकी है। यदि दूसरी संख्या में स्थल रहा तो उसी में ममालोचना भेज दूंगा 'उपमिति प्रपंचा कया' की पूरी प्रति बम्बई के
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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