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________________ बाबू पूरणचन्द जी नाहर के पत्र ६५ P. C. Nahar M. A. B.L. 48, Indian Mirror Stree Vakil High Court Calcutta 21-7-1932 Phone Cal 2551 पूज्य वराचार्य विविध शास्त्र पारगामी श्री जिनविजयजी महोदय की पवित्र सेवा मे पूरणचन्द नाहर की सविनय वन्दना अवधारिएगा । यहाँ श्री जिनधर्म के प्रसाद से कुशल है । आपकी शरीर सम्बन्धी सुख-शान्ति सदा चाहते हैं। __ आगे आज दिन श्रीमान पृथ्वीसिंह शान्ति-निकेतन जाते हैं यहाँ का ओर हाल उनके जवानी मालूम होगा। कल दिन अहमदाबाद से पडित सुखलालजी सा. के पत्र से मालूम हुआ कि आप वहाँ से ग्रीष्मावकाश के पश्चात् शान्ति-निकेतन के लिये रवाने हुए है सो आशा है कि यथा समय सकुशल वहां पहुंचे होगे। __ आगे खरतर गच्छ पट्टावली संग्रह का प्रूफ तो आपने पहले ही दृष्टिगोचर कर लिया होगा। पश्चात् मैंने इसे प्रकाशित कर दिया है। आपका पता ज्ञात नही था। इस कारण प्रबल इच्छा रखते हुए भी आपको अद्यावधि भेजने को असमर्थ था। भाई वहादुरसिंहजी से भी कई वार आपके विपय में पूछा था; परन्तु वे, कुछ पता सही नहीं बता सके । अस्तु मैंने प्रायः खास-खास जैन पत्रो मे इसकी सूचना प्रकाशित करवा दी है और सेवा मे पाच कॉपी भेज रहे हैं और चाहिये तो समाचार आने पर भेज दू गा। आगे आपके प्रथम पत्र में इसकी ७५० कापियां भेजने की सूचना थी परन्तु इस समय आगे के फमें गिनती कराने से ५०० निकले । सो मैंने अभी ५०० ही किंचित् व्यक्तव्य और अनुक्रमणिका छपाई है। बाकी २५० पुस्तक के फमें प्रेस वाले के यहा शायद होगे सो आपको ज्ञात कराने के लिये लिखा है ।
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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