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________________ बावू पूरणचन्द जी नाहर के पत्र पं. सुखलालजी से भी मेरा जयजिनेन्द्र कहिएगा। उनसे भी कृपया पूछकर उनको भी जो कुछ स्मरण हो वह भी लिख दीजिएगा । और सभी से मेरा यथा योग्य निवेदन करें। शरीर का यल रखें। योग्य सेवा लिखें। ज्यादाशुभ शास्त्रीजी महोदय से प्रणाम निवेदन करे। . विनीत पूर्णचन्द की सविनय वन्दना (नोट) यह पत्र वाबूसा. पूर्णचन्द नाहर का शान्तिनिकेतन मे मिला था। जब मैंने वहां पर सिघी जैन ज्ञानपीठ की स्थापना की थी। (३४) P. C. Nahar M. A.B.L. 48 Indian Mirror Street Vakil High Court Calcutta 19-9-1931 Phone cal. 2551 परम श्रद्धास्पद विद्वद्वर्य श्रीमान् जिनविजयजी महोदय की पवित्र सेवा में पूरणचन्द नाहर का सविनय नमस्कार वचिएगा। श्रीमान् धीरसिंह ने मेरी ओर से आपकी सेवा मे सवत्सरी सम्बन्धी क्षामणा निवेदन किया होगा । मैं पुनः मन वचन काया से क्षमाता हूँ। जो कुछ जाने अनजाने अविनय हुई हो वह सब क्षमा करें। , आगे शान्ति निकेतन से श्रीमान् रतीलाल भाई आये थे। परन्तु दुर्भाग्य वश मुझसे मिलना न हुआ। मैं बाहर चला गया था, अस्तु उनसे भी मेरी सविनय क्षामणा कह देने का कष्ट ले। पट्टावली के लिये आपने जो वक्तव्य लिखने की असीम कृपा की है। इससे अब वह पुस्तक प्रकाशन मे अधिक विलम्ब न होगा। मैंने भी कुछ निवेदन लिखने की इच्छा प्रकट की थी वह लिखकर पत्र के साथ मे भेज रहा है। इसे अवकाश पर देखकर लौटाने की कृपा कीजिएगा। ने मके प्रफ आपके अवलोकनार्थ शीघ्र ही भेज दूंगा और
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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