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________________ - जो जो बातें तुममे शारीरिक, वौद्धिक, मानसिक अथवा आध्यात्मिक दुर्वलताओ को उत्पन्न कर रही हो, उन्हे तुरन्त तहस-नहस कर समाप्त कर डालो। विष और जीवन भला एक साथ कैसे रह सकते हैं ? अन्धकार और प्रकाश की एक ही स्थान पर-उपस्थिति की कल्पना कैसे की जा सकती है ? इन बातो की सच्चाई मे रच मात्र भी अविश्वास न रखो । सत्य को अपनाने से पौरुष का निर्माण होना अनिवार्य है । जिसके सहारे तुममे दुर्वलता पैदा हो, उसे सत्य कहना कसे सभव है ? सत्य का. अर्थ है शुचिता एव ज्ञान । दुर्वलताओ को नष्ट करना, यही - सत्य का कार्य है। सत्य प्रकाशमय है। उसकी सहायता से बुद्धि का प्रकाशित होना, उत्साह के उत्स का निर्माण होना अवश्यम्भावी ११० चिन्तन-कण
SR No.010612
Book TitleChintan Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Umeshmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1975
Total Pages123
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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