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________________ ३० ] मुंहता नैणसीरी ख्यात आवो।" पछ कितरेहेक दिन मुंहतो हाथी ले धार आयो। हाथियांनूं भली-भांत सांतरा करनै धाररा धरणीरी नजर गुदराया। तरै धाररा धणी इचरज हुवो, नै पूछियो " हाथी किण दिया ?" तरै कह्यो"रावळ देवराज भाटी दिया ।" तरै आप मनमें ऊणो गयो । जु"हूं इसड़ा घरा छोरुवांनूं घर-घर भीख मंगाड़ी' नै देवराज . उपगाररै वास्तै सौ, सौ हाथी दै।” मनमा तो आ वात जांणी, नै मुंहडा ऊपर कहण लागो -"भाटियारै हाथी भूखां मरता हुता, आंखियां अदोठ किया । इणरै माथै चढ़ाया ।" पछै मुंहतरा माणस छूटा । ने माहवतां, भोयानूं मुंहत मारग खरच देने सीख दी। वे पाछा देवराज कनै देरावर जाय मुजरो कियो। मुंहतारा कागळ गुदराया । तरै रावळ वात पूछी जु-"धाररै धणी अँ हाथी देखनै कांसू कह्यो ?" तरै किणीहेक' कह्यो-"पंवार कहण लागो, भाटियारै हाथी भूखां मरता हुता, अांखे अदीठ किया।" तरै प्रा बात रावळ देवराज सुणने घणो बुरो मानियो। तरै आदमी दोय माणम' घररा चाड़ने मेलिया। कहाड़ियो' -"म्हें भूखा मांहरा .. हाथी यांखियां अदीठ किया था सु उरा दीज15 1 नहीं दो तो म्हां नै श्रां बुराई होसी । वे रावळरा आदमी धार गया। पंवारसूं जाय मिलिया । रावळ कहाड़ियो थो सु कह्यो। वात हँसीरी विख-सी. हुई । “देवराज नांमसाद इसड़ो जु सको जांग मुंहडा वार काढी छ तो करसी । पिण क्यूं सौ, सौ हाथी वातां साट दिया जाय नहीं।' हाथियों को अच्छी तरह सजा कर धारके स्वामीको पेश किये। 2 आश्चर्य । गेहाथी किसने दिये? नव साप मनमें लजित हुया (जसो-छोटा, कम)। मैंने को प्रतिदिन परयः गाउनको घर-घर भीख मांगने के लिए विवश किया (छोरू=पुत्र, निजी। 6 और प्रगटम कहने लगा 17 भाटियोंके यहां हाथी भूखे मरते थे, अांखोंने दूर जिस आर पहनान चढ़ा दिया। पीछे प्रधानके कुटिम्बीजन मुक्त हुए। मानजी पर देवयजने काम दिले थे. पेन किये। 11 धारके स्वामीने इन हाथियोंको नाम क्या कहा। 12 कि.मी गाने 15 अच्छे प्रादमी। 14 कहलवाया। IS हम भूखे सिने अपने साथियोंको आंखों में प्रदीट किये लेकिन वनावित हैं। मोदी हमारे और नम्हारे बीच में लदाई हो जायेगी। 15 नीकी वातमें विप मैदानमा टेवगाज जातिप्राप्त है नो नव जानते हैं। 19 जो बात पर गार बनाया। 27 परंतु नी, नी हावी बातों के बल पर
SR No.010610
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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