SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 343
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ ३३५ सती हूं तो म्हारो वचन सत्य छ, आ धरती मेवाड़री थांहरै पेटरां रै रहिज्यो।' इसो वचन राठवड़ कह्यो, सु आज लग पाळं छै । - रांणो मोकल चित्रौड़ राज करै।। .... एकदा प्रस्ताव । राव रिणमलजी छड़बडै साथसूं जात्रा करण पधारियो हुतो । पछै जात्रा कर पूठो पधारियो हुतो। सु मारगमें आवतां ढूंढाड़ माहै राजा पूरणमल हुतो' । तियै कह्यो – 'म्हारा' .... चाकर रहस्यो ?' ताहरां कह्यो—'रहिस्यां' ताहरां कह्यौ-'भला' । एक दिन चोगानमें रमता, पूरणमलरै जोधो नै कांधळ साथै . हुता। सुं कांधळ जेठी घोड़े चढियो हुतो। सु घोड़ो पूरणमल दीठो । ताहरां मांगियो । ताहरां कांधळ कह्यो-'रिणमलजीनें पूछियां विना न देऊ ।' ताहरां पूरणमल कहै-'जोर ही घोड़ो लेईस11 ।' ताहरा जोधो कांधळ डेरै आया। रिणमलजी कनै12 प्राय घोड़ारो वात कही। .. ताहरां घाटा रोकाया13 । अर घोड़ो लेणरी साजत मांडी छै14 । ताहरां रिणमलजी, जोधो, कांधळ बीजो ही सरब साथ लेने पूरणमलरै दरबार प्राया। जेथ पूरणमल बैठो हुतो तेथ गोडो दाबि अर जाय बैठा15 । बैस पर कर्णनं हाथ घातियो। कणो पकड़ पर ऊभो कियो । बाहिर ले आया। आय अर घोड़े चढ़िया । घोड़ो बेळास कियो"। पूरणमलनूं चाढियो । ताहरां पूरणमलरो रजपूत मारणनूं आयो । ताहरां कटारी काढी। इसड़ा हुवा जु पूरणमल मारै18 | ताहरां पूरणमल रजपूत पालिया । ताहरां उठारा चढिया पूरणमलनूं ... I मैं जो सती हूँ तो मेरा यह वचन सत्य जानना कि मेवाड़की धरती सदा तुम्हारे वंशजोंके पास बनी रहेगी। 2. राठौड़ रानीके कहे हुए इन वचनोंका अाज तक पालन किया जाता है।... 3 एक बारकी बात है। 4 राव रिणमल अपने थोड़ेसे आदमियोंके साथ तीर्थयात्रा करनेको गया था । 5 यात्रा कर के लौट रहा था। 6 आते हुए । 7 था । 8 उसने • कहा। 9 हमारे । 10. उस घोड़ेको पूर्णमलने देखा। II घोड़ा जबरदस्तीसे ले लूंगा। 12 पास। 13 पूर्णमलने सभी मार्ग रुकवा दिये। 14 और घोड़ा लेने की तैयारी हो रही है । IS जहां पूर्णमल बैठा था, वहां जाकर उसके घुटनेको दवा कर बैठ गये। 16 बैठ कर के पहुंचेमें हाथ डाला । पहुंचा पकड़ कर के उसे खड़ा कर दिया। (करणो = १ पहुंचा २ कमर ३ गरदन) 17 एक घोड़ेके ऊपर दोनों सवार हुए। 18 ऐसा ढंग बनाया कि मानो पूर्णमलको मार रहे हैं। 19 तब पूर्णमलने राजपूतोंको रोक दिया।
SR No.010610
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy