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________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ ३३३ ... मंदारियारा बाकरा ४०।५० मंगाया' । घणा गाऊथी अणाया। घणा वांना किया । मार बाकरांनै गोठरी तयारी कीधी । चवंडैजीनूं आदमी मंकियो। 'राज ! गोठ तयार छै । जीमणनै पधारो। : मेवाड़ा ठाकुर सोह बैठा छै ।' ताहरां चवंडो आयो। बोलियो-'रिणमलजी ! दीवांणनं पर. णावो ।' ताहरां रिणमलजी बोलिया-'थांनूं परणावस्यां । दीवांगरी वय अवर छै' ।' ताहरां चवंडो कहै-'रिणमलजी ! थे मांहरै म्होटा सगा । म्हांनूं रजपूत करो ।' वडी हठ हुई। रिणमलजी माने नहीं। चवंडोजी छाडै नहीं। युं करतां पाछलो पोहर हुयो । ताहरां चवंडोजी बोलिया-'रे, कोई चारण बांभण भलो छै ईयारै' ?' ताहरां कह्यो-'जी, चारण चांदण खिड़ियो छ ।' ताहरां चांदण खिड़ियन तेडि नै कह्यो- 'थारै ठाकुरनूं समझावि । एक छोरू मर ही जाय .: छै1 ।' ताहरां चांदण बोलियो-'राज! राजा थां सीसोदियांरै वडो बेटो हुवै12 | बाकीरा फिरता फूंद्यां दो। तैं वासतै न द्यां । अर थे बाई . . मांगो छों; अर जो म्हे द्यां; अर बाईरै छोरू हुवै सो 4?' ताहरां - चवंडोजी बोलिया-'छोरू हुवै सो चीत्रोडरो धणी ताहरां चारण कहै-'राज ! चीत्रोड़री साहिबी कुण छोडै16?' ताहरां चूडैजी ... सूस कियो" । ताहरां चांदण जाइन रिणमलजीनूं कह्यो-'राज ! ... कासू करो छो18 ?' ...... 1/2 तव रिणमलजीने बहुत दूर से मंदारियाके ४०-५० बकरे मंगवाये। 3 अनेक प्रकारके व्यंजन बनवाये। 4 बकरोंको मार कर के गोठकी तैयारी की। 5 जूडेजीको आदमी भेज कर कहलवाया कि राज ! गोठ तैयार है, भोजन करनेको पधारें। सभी मेवाडा ठाकुर बैठे प्रतीक्षा कर रहे हैं। · 6 रिणमलजी! आपकी पुत्रीका विवाह दीवानसे करिये । .7 तुमको व्याहेंगे। दीवानकी वय अधिक हो गई है। 8 रिणमलजी ! आप हमारे बड़े संबंधी हैं, आप हमें राजपूत बनायें। (हमें यह सम्मान दें।) 9 इनके यहां समझदार चारण ब्राह्मण भी कोई है ?. 10/II तब चांदण खिड़िये नामके एक चारण को बुला कर कहा कि ... तुम अपने ठाकुरको समझायो कि वे ऐसा ही समझलें कि उनकी एक संतान मर गई है। 12/13 राज ! तुम सिसोदियोंमें जो बड़ा बेटा होता है वही राजा होता है। शेप इधर-.. उधर मारे फिरते हैं; इसलिये हम दीवानको अपनी कन्या नहीं देते हैं । 14 तुम कन्या मांग रहे हो; मान लो, यदि हम देदें और उस कन्याके पुत्र हो जाय तो उसका क्या होगा ? I5 पुत्र '.. होगा तो वह चित्तोड़कार वामी होगा। 16 राज ! चित्तोड़का राज्य कौन छोड़े ? 17 तब चूंडेने इस बातकी सौगंध खाई। 18 राजन् ! क्या विचार करते हो ?
SR No.010610
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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