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________________ ३२८ ] मुंहता नैणसीरी ख्यात ताहरां मोहिल आपरो हाथ वाढि पर सादूळरै साथै वाळियो । आप पूगळ गई । जाय सासूरै पगै लागी । सुसरनं मुंह दिखाळ अर कह्यो-'सुसराजी ! म्हैं थांहरो सासूजीरो मुंह देखणो हुतो तर वासते हूं एथै आई छु ।' पछै सासू सुसरैरो मुंह देख, अर सती हुई छ । अरड़ कमल सादैनूं मार नागोर अायो। राव चूंडंजीरै पाए लागो । ताहरां अरड़कमलजीनूं रावजी दूणो वधारो दियो । डीडवांणो पटै दियो । इति प्ररडकमलजीरी वात संपूर्ण ... I तव मोहिल कुंवरानी ने अपना हाथ काट कर उसे सादुलके साथ जला दिया । 2 स्वयं पूगल चली गई और वहां जा कर सासूके पाँवां लगी। 3 ससुरको अपना मुंह दिखा कर कहा-'ससुरजी ! आपका और सासूजीका दर्शन करना था इसलिये मैं यहां आई हूँ। 4. राव चूंडाजीके पाँवां लगा। 5, तब रावजीने अरडकमलजीको दुगुना वधारा और . सम्मान दिया और डीडवाना भी पट्टे में कर दिया।
SR No.010610
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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