SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 327
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ ३१६ बेहुं रुखा हुय आया। ताहरां गोगादेजी कह्यो-'रे घोड़ा ल्यावो।' ताहरां ढाढी कहै - .... चाहोया नह लव्भए, गोगादे घोड़ाह । ... बद्धे तुरी न चारिय, घी घत्तै थोड़ाह ॥ - ताहरां 'लड़ाई मंडो। भाटी नै जोईया राठोड़ांसूं वाजिया । ... ... गोगादे जी घावै पड़िया । साथळां बेहुं वढी । बेटो ऊदो पण पसवाड़े पड़ियो' । तरवाररो नामांण किसू छै. सु तरवोर टेकनै गोगादेजी । बैठा घूमै छ । तितरै रांणंगदे चढियो नीसरियो । ताहरां गोगादेजी बोलिया.. . 'राव राणंगदे ! तू वडो सगो छ, म्हारो परवाड़ो लेल्यै' ।' ताहरां रांणंगदे बोलियो-'तो सारीखां विष्टारो म्हे परवाड़ो लेता फिरां छां?' ताहरां रोणंगदे तो बाघो ही हो । तितरै धीरदे जोईयो आयो । ताहरां गोगादेजी बोलियो-'धीरदे ! श्राव, तूं वडो जोईयो छ । म्हारो परवाडो ले । थारौ काको म्हारै पेट माहै तड़फड़े छै । म्हारो परवाड़ो लै।' ताहरां धीरदे घिरियो । नड़ो ग्रायनै उतरियो । ताहरां गोगादेजी तरवाररी झड़प वाही सु जोईयो कनै पाय पड़ियो । ताहरां ताळी दे पर हसियो । ताहरां । धीरदे बोलियो ... I तब पानी पिलाया और घोड़ोंको ताजा करके दोनों ओरसे चले। 2 तब ढाढ कहता है। ढाढी = विरुद गाने वाली जाति । 3 हे गोगादे ! चरनेको छोड़े हुए घोड़े प्रावश्यकता पर हाथ नहीं पाते । ऐसे समय पर घोड़ोंको बँधा रख कर थोड़ा घी दे देना चाहिये, पर चरनेके लिए नहीं छोड़ना चाहिये । 4 तब लड़ाई शुरू हुई। भाटी और जोईये राठौड़ोंसे लड़े। 5 गोगादेजी आहत हुए। 6 दोनो जंघाएँ कट गई। 7 उनका पुत्र ऊदाभी पासमें गिर गया। 8. उनकी (गोगादेजीकी) तलवारकी लचक कैसी बढ़िया है, वे उस तलवारको . ........ टिका कर उसके सहारे बैठे हुए घूम रहे हैं। 9 इतने में राणंगदे सवारी किया हया उधरसे निकला। 10 राव राणंगदे ! त हमारा बड़ा सम्बन्धी है, मेरा प्रवाड़ा ले ले। प्रवाडावीरताका विरुद। II तेरे समान नीचके हम प्रवाड़े लेते फिरते हैं क्या ? 12 तब. राणंगदे तो आगे चला गया। 13 तेरा काका मेरे पेटमें छटपटा रहा है। 14 तब धीरदे लौटा। .. 15 निकट पाकर घोड़ेसे उतरा । 16 तब गोगादेजीने झड़प कर तलवारका प्रहार किया सो ... जोईया पासमें आकर गिर पड़ा। . .
SR No.010610
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy