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________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [ २७७ ग्राया । उठातूं पाली प्राय डेरा किया। तठे कान्है मेररी ठाकुराई तसु लोकां पास हासल पण लै; अर अनीत पण करै । जिका कुंवारी परणीजें, जिको दिन ३ अापरै महल राखै । ___सु आसथांनजीरो डेरो एके बांभणरै घरै' । तिणरी बेटी मोटियार । तैनूं पासथांनजी देख अर कहण लागा-'जु आ विधवा छै ?' तद ब्राह्मण बोलियो-'राज ! श्रा कुंवारी छ ।' पूछियो-'किस वासतै ?' तद ब्राह्मण अरज कीवी-'जु राज ! अठै या अनीत छ ।' अांसथांनजी पूछियो-'जु मेर कनै साथ कितरोहेक छै° ?' इण अरज कीवी-'महाराज ! पाळा' हजार २०००० हुसी।' तद आसथांनजी बोलिया-'जु बेटी थांरी परणाय, म्हे जांणां ।' तद ब्राह्मण वेटी परणाई, फेरा लिया। पछै कानैरा आदमी ब्राह्मणरी वेटीनै वंहल बैसांण ले हालिया। ज्यौं अासथांनरै डेरै गोडै आया, त्यौं ब्राह्मणरी बेटी भाज'' अर डेरै में आय बैठी। त्यौं वे जोर सो करण । लागा" । तद अासथांनजी रा चाकरां उहां मार काढ़िया । श्रा खबर कानड़देन हुई । कान्हो साथ ले पाली ऊपर आयो। आसथांनजी नीसरिया' । कांनै पाली मारी । लूटेरू.1 लोग वित ले चालता रह्या । कान्हो लारै थोड़ा सा माणसांसू रह गयो । यूं करतां . ___I पाली मारवाड़में एक नगर है, जो जोधपुर से १८ कोस है। 2 'कान्हा' एक मेरका नाम है। 3 पर्वतोंमें रहने वाली एक कीम। 4 स्वामित्व । 5 अन्याय भी करता है। 6 क्वारी (यपरिणीता) का विवाह हो तो उसको ३ दिन अपने महल में रखता है । .. 7 ब्राह्मणके घरमें । 8 तरुण । 9 किसलिये ? 10 मेरके पास मनुष्य कितने हैं ? II पैदल । 12 तेरी पुत्रीका विवाह करदे; फिर हम जाने। 13 भांवरी ली, (अग्निकी चार प्रदक्षिणा की। इससे विवाह पूर्ण हुमा समझा जाता है । तीन परिक्रमामें कन्या आगेड़ी और चौथी परिक्रमामें वर आगेड़ी रहता है । तदन्तर कन्याको वरके वाम अंगकी ओर बिठाई जाती है । चतुर्थ परिक्रमाके समय यह गीत गाया जाता है-'चौथै फेरै रे बाई हुई पराई।' तात्पर्य यह है कि चतुर्थ परिक्रमा होने पर पिताका स्वत्व मिट कर पतिका स्वत्व हो जाता है और फिर वह उसकी पत्नी कहलाने लग जाती है । ) 14 कान्हा मेरके मनुष्य ब्राह्मणकी बेटीको जनाना वैलगाड़ी में विठला कर ले चले। 15 पास । 16 भाग कर। 17 तब वे बल दिखाने लगे। 18 उनको। 19 पाली छोड़ कर चले गये। 20 कान्हाने पालीको लूट लिया। 21 लूटने वाले। 22 धन और मवेशी लेकर चले गये। 23 पीछे। 24 मनुष्यों से ।। -
SR No.010610
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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