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________________ मुंहता नेणसोरी ख्यात [ २६७ मारियो । लाखैरो वैहनेई अर लाखैरै वास हुतो' । सु वै लाखैरो प्रांब वाढियो, ते ऊपर लाखै मारियो । सु वेध पड़ियो । सुआपसमें .... चावड़ां पर लाखै युद्ध हुवै । सु चावड़ा हारै अर लाखो जीपै । सदा ...... जुध हुवै सु लाखो जीपै" ।। तिकै समईयै रावजी श्रीसीहोजी द्वारकाजी पधारता पाटण पधारिया । सु लाखैरै इष्ट कुळदेवीरो अर चावड़ारै इष्ट खेत्रपाळरो' छ । सु देवी सवळ अर खेत्रपाळ निबळ । तिण वास्तै लाखो जीपै । तिण वार चावड़े राजा मूळनूं सुपनैमें खेत्रपाळ कह्यो'-जु राव सीहो कनवजरो धणी1 राठवड आयो छ । तिणनूं श्रीमहादेवजीरो वर छै; सु थे मिळो, ज्युं थांहरो वैर घिरै । इणारै हाथां लाखो मरसी । ताहरां चावड़ा एकठा हुय राव सीहैजी कनै आया। प्राय अर भक्तरी" वीनती कीधी। वीनती रावजी मानी। चावड़ां भली भांत भगतरी तयारी कीवी । आप पधारिया। ताहरां मूळरांजरी मा कडूंबैरै बेटांरी बहुवां जिकै बरस १५, १६, १७री बाळ. रांडां' हुती, तिय° कह्यो-'जाहरां1 रावजी अठै आरोगै, ताहरां थे परुसारै मांहै? तरकारचा ले-ले अर मो आगै आणप्रांण मूकज्यो । ताहरां रावजी बात पूछसी, ताहरां हूं सरब वात कहीस।" I राखाइतका वाप लाखाका बहनोई था और लाखाके यहां ही रहता था। 2. उसने । 3 जिस पर लाखेने उसे मार दिया। 4 जिससे परस्पर शत्रु ता हो गई। (कई प्रतियोंमें 'सु वेध पड़ियो'के स्थान 'सु बेसुध पड़ियो' पाठ भी लिखा मिलता है।) 5 सदा युद्ध होते रहते हैं, जिनमें लाखा ही जीतता है। 6 उस समय रावजी श्रीसीहाजी द्वारकाजी जाते हुए पाटनमें आये। 7 क्षेत्ररक्षक देवता, क्षेत्रपाल । 8 तुलनामें देवी सबल और क्षेत्रपाल निर्बल । 9 इसलिये लाखा जीतता है। 10 उस समय स्वप्नमें क्षेत्रपालने मूलराज चावड़ेको कहा। (मूलराज सोलंकी सम्वत् ६६८में अपने मामा सांवतसिंह चावड़ाको मार कर पाटनका राजा बना था ।) II कन्नौजका स्वामी। 12 राठौड़। 13 वैरका बदला लिया जाय। 14 इनके हाथोंसे। 15 तब। 16 भोजनके लिये प्रार्थना की। 17 भोजनकी सामग्री। 18 कुटुंबके। 19 बाल-विधवाएं। 20 उनको । 21 जब । 22 भोजन करे। 23 परोसनेकी सामग्रीमें। 24 शाक आदि व्यंजन पदार्थ । 25!26 मेरे .. आगे ला-ला कर रखना।
SR No.010610
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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