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________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात [१७ ५ छीकण। पूत हुवो । जिण आपरै ५ आटेरण। नांवै' खाडाळ मांहै ५ पहोड़। लणोट कोट करायो। ५ लपोड । पछै तणुऊपर अरोड़५ हईया। भाखररी फौज आई, ३ केहर वडो, जिण आपरै तरै तणुं बाज मुंवो। __नांव सिंधमें केहरोर तिणरा बेटा- नवो सहर वसायो। ५ विजैराव चूडाळो। ४ तणुं केहररो, वडो रज- ५ जैतूंग। विजैराव चूड़ाळो निपट वडो रजपूत आखाड़सिद्ध हुवो तणुंरो बेटो । इणरी ठाकुराई पैहली तो आछी ती, पछै तिण ऊपर सिंधरी वडी फोज आई नै विजैराव नीसरणवाळो' रजपूत नहीं, सु आप देवीजीरी घणी पूजा करतो, सु तरै देवीजीसूं इंछना करी, मो आग आ फोज भाजै तो हूं तुरत देवीजीनै म्हारो माथो चाहूं । मन माहै इंछना की । वात किणही जणाई नहीं । देवीजी रथ आया, वेढ हुई, विजैराव जीतो, मुगल भागा । पछै राव आपरै घरै आयो । प्रा वात किणहीसूं जणाई नहीं' । आधी रातरा आप एकलोहीज ऊठ नै देवीजीरै देहुरै गयो । उठे जाय हाथ-पग धोयनै आपरी तरवार काढ़ नै कंवळपूजारै वास्तै गळा ऊपर मेली । तरै देवीजी कह्यो-''मां! मां !" तरे इण जांणियो, वांस1 कोई मांणस आयो, सु तरवार परी कीवी। बीजै फेरै वळे तरवार कांधै मांडी, तरै देवीजी मोहडै बोलिया - .." तूं विजैराव कंवळपूजा मत करै, म्हेतो थारी पूजा मांनी।" इतरो ... कहि अबोला रह्या । तरै इण वळे कांधैनूं तरवार मांडी। तरै _1 नाम पर । 2 जिसने अपने नामसे । 3 तब तणू युद्ध करके काम आया। 4 युद्धविशारद । 5 भाग कर निकल जाने वाला। 6 इच्छा, कामना । 7 यह बात किसीको प्रगट नहीं होने दी। 8 मस्तक अर्पण करके पूजा करनेके निमित्त (शिरच्छेदन करनेको) अपनी तलवार गर्दन पर रखी। 9 मत, नहीं। 10 पीछे । II सो तलवार हटा दी। 12,13 दूसरी बार पुनः तलवारसे कंधेका संधान किया तब देवीजी मुंहसे बोलीं। 14 इतना ह ककर चुप हो गई।
SR No.010610
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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