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________________ ... मुंहता नैणसीरी ख्यात [ २३१ लाखा कनै मेली' । प्रा उठ गई । लाखो उठे बैठो थो सु अपूठो हुइनै बैठो नै डाहीनूं लाख [पसाव दियो । सु जिकू थो सु सारो के दरड़े नांखियो । नै इण वीण रबाब जिकू बतीसूं जंत्र तयार करने ओ दूहो गायो फूल सुगंधी वाड़ियां, भाटी देख सिधांण । ... तो विण सूनी सिंधड़ी, वळ लाखा महरांण ॥ अो दूहो इण कह्यो। तरै लाखो फिरनै सांम्हो बैठ कह्यो--"फूल .....मुंवो ?" तरै इण कह्यो--"थे थांहरै मुंहडै कहो छो' ।' तरै लाखै कयो--"हिमैं म्हारी जीभ कटावो । मैं आ वात कही।" तरै रूड़े माणसै कह्यो--"या वात कुं हुवै ?" तरै सोनारी जीभ सात वेळा करने काटी । इण भांत सासत कियो । पछै डाहीनूं १ बीड़ो लाखै दियो, तिको माथै चाढ लियो । तरै लाखो कहै--"कूण वास्तै13 ?" तरै डूंमणी कयो लख लाखा द्रह जाय, जो दीजै मुख वांकडै । पांन कुटक्कै रहि कहै, जो लाभै सो भाय ।। डूंमणी डाही कयो--"पहली तो लाख दियो अपूठे मुंहडै सु कुण कांम ? नै बीड़ो सांम्हो फिर दियो सु लाख सरीखो।" पछै लाखो केलाकोट आय टीकै बैठो। पछ वांगै थांण फूल रहतो तठे लाखो ही रहण लागो। तब डाहीको लाखाके पास भेजा। 2 यह वहां गई। 3 लाखा वहां बैठा हुआ था, परंतु पीठ फिरा कर बैठा और ऐसे बठे हुए ही उसने डाहीको लाख-पसाव दिया । 4 सो जितना जो कुछ उसको दिया वह सारा का सारा एक खड्डे में डाल दिया। 5 और इसने वीना, रवाब आदि बत्तीसों वाद्य-यंत्र थे तैयार करके यह दोहा गाया। 6 हे फूल ! सुगंधित बाड़ियों में ऐसा न हो कि कोई अन्य भाटी आकर के उसकी सुगंधी लेले। हे बड़े राजा लाखा ! तेरे बिना सिंघ सूनी है । तू जल्दी लौट प्रा। 7 तब इसने कहा-तुम अपने मुंहसे ही कह रहे हो। 8 अब मेरी जीभ कटवा दो । 9 यह बात कैसे हो सकती है ? 10 तव सोनेकी जीभ बनवा कर सात बार उसको काटा । II इस प्रकार जीभ काटनेका शास्त्रविधान किया। 12 उसने उसको अपने मस्तक पर चढाया। 13 ऐसा किसलिये ? . 14 खड्डेमें। 15 जो टेढ़े मुंहसे दिया जाय (जो पीठ फिरा कर दिया जाय) । ..
SR No.010610
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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