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________________ २१० ] मुंहता नैणसीरी ख्यात 3 छै' । तिण ग्राप लाखड़ी ग्रासण मांडियो" । तिण यांवा २२ ग्रासणरी पाखती वाह्या" । तिके तिरेक दिने फळण लागा । सु करत रे वैर दुहागण हुती, तिणसूं गरीबनाथ महर करता । वहन कहि वोलाई हुती' । तिणरो बेटो गरीबनाथरै जेठ मास मां ग्रासण प्रायो हुतो । तर नाथ चेलानूं कह्यो - "भांजनू यांचा केहेक उतार दो ।" तर चेले चढने ग्रांवा ५० तथा ६० उतारिया । गरीबनाथ उण डावड़ा दुहागणरानूं दिया, सु ग्रांवा ले डावड़ी घरे थायो" । तर सुहागण वैर करनहै [ रे] हृती, तिरै छोरु वे यांवा दीठा" । वे जाय मा श्रागै मांगण लागा । तर सुहागरण वैर जांमनूं कहाड़ियों" "जोगी यांवा हुवा छै, डावड़ानूं मंगाय दो ।" तरै जांम यांवा लेणनूं ग्रादमी मेलिया ", तिणे जाय गरीबनाथनूं कह्यो - "जांम यांवा मंगावें छै, दो ।" तरै गरीबनाथ कह्यो - "म्हे जोगी किणनूं प्रवाद्यां, मांहरा यांवा छै ।" तर जांभर ग्रादमियां कह्यो"ग्रासण थांहरो", पण यांवा धरतीरा धणियांरा छै ।" पर्छ जमरा आदमी आपसूं ग्रांवा उतारणनै चढिया । तरं गरीवनाथ कुहाड़ियो लेने ग्रांवा वाढणनूं - ऊठियो " । तरै चेले १ कह्यो - " हाथांरा पाळिया कांय वाढो" ? कांने मुद्रा छै, ग्रांबांरो वरण फेरो"।" तरै आ वात गरीवनाथरै दाय आई " । तरै को- "ग्रांवांरी ग्रांवली 3 19 I वहां (कच्छ में) वृधलीमलका शिष्य योगी गरीबनाथ एक बड़ा सिद्धि प्राप्त महात्मा है । 2 उसने लाखड़ी नगर में आकर अपना त्रासन जमाया । 3 उसने अपने आसन के पास २२ ग्रामके वृक्ष लगाये । 4 कितने दिनोंके बाद वे फल देने लगे । 5 घोघा कर्णकी एक उपेक्षिता पत्नी थी, उसपर गरीवनाथ कृपा रखते थे, उसको बहिन कह कर बतलाते थे । 6 उसका । 7 था । 8 तव नाथने अपने चेलेसे कहा - भानजेको कुछ ग्राम वृक्षों परसे उतार दो ।' 9 गरीवनाथने उस उपेक्षिता । (ग्ररणमानेतीके) पुत्रको ग्राम दिये सो वह लड़का उन ग्रामोंको ले कर घर पर प्रायो । 10 तव कर्णके जो मानेती स्त्री थी, उनके लड़केने उन ग्रामोंको देखा । II तब उस मानेती पत्नीने जामको कहलवाया 1 12 भेजे । 13 उन्होंने । 14 तब गरीबनाथने कहा- आम हमारे हैं, 'हम योगी लोग किसीको क्यों ग्राम दें । 15 तुम्हारा । 16 तव गरीवनाथ कुहाड़ा लेकर आमोंके वृक्षोंको काटनेके लिये उठा । 17 अपने स्वयंके पाले हुए हैं, क्यों काटो ? 18 आप कानोंमें मुद्रा धारण करने वाले सिद्ध हैं, आमके वृक्षोंका रूप-रंग बदल दें। 19 तव यह वात गरीवनाथके भी मनमें भाई ।
SR No.010610
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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