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________________ ११४ ] मुंहता नैणसीरी ख्यात लोक रहै छै सु सोह कोट मांहि रहै छै । फळोधीसू कोस २५ छै, जेसळ मेरसूं कोस ७० छ । वीकानेरसू कोस ४५ छै। देरावरसू कोस .. ६० छै । पूगळसूं कोस ४४ । वाप, विकूपुरसू कोस १६, फळोधीसूं . कोस ८, किरड़ा निजीक, तिकोस वडी गांव छै । ठाकुराईरी मंड. वाप माथै छै । बांभण-पलीवाळ घणा वसं छै । वांणियांरा घर ५० ..., तथा ६० वसै छै । वाप घणा सेवज गोहूं सारी सींव काठा नीपजै छ । मण १ गोहूं वायां मण ६० गोहूं हुवै छै । घणी ज्वार हुवै । सखरी साख हुवै छै, ताहरां कण-नेपत गोहूं मण २००००० तथा . ३००००० जाझेरा हुवै छै'। बीजाही सिरहड़ सारीखा रूड़ा गांव छ । माणस हजार २००० री जोड़ राव विकूपुररै भले समाऐ ठोड़ छै । मारग देरावर मुलतांनरो वहै छै", तिणरी रूडी प्रोपत छै'। तिका ठोड़ रावळ केल्हण खाटी । भली ठाकुराई जमी छ । तिण समै राव राणंगदे भाटी, रावळ लखणसेनरो वेटो पुनपाळ जेसळमेरसू काढियो, तिणरो पोत्रो हुतो', सु कहै छै "राव चूंडैजी मारियो। तिणरै बेटो न थो, तरै राव रांणंगदेरी बैर राव केल्हणनूं कहाडियो14-"मोन थे घर प्रांणो तो हूं थांनं गढ दू " तरै केल्हण परपंच कियो, नै कहाड़ियो-“भली वाता"।" पछै आप चढनै पूगळ ___I जो लोग वहां वसते हैं वे सव कोटमें रहते हैं। 2 वही एक बड़ा गांव है। 3 ठकुराईका सव आधार वाप गांव पर है। 4 वहां पर पल्लीवाल ब्राह्मण अधिक रहते हैं। 5 वापकी सारी सीमा (भूमिमें) संवजके काठे-गेहूं बहुत होते हैं। (सेवज-वे गेहूँ, चने आदि जो आश्विनकी वर्षाकी आर्द्रता भूमिमें बने रहनेके कारण उत्पन्न होते हैं। इन्हें सिंचाईकी आवश्यकता नहीं रहती।) 6 एक मन वोनेसे ६० मन पैदा होते हैं। 7 जव .. फसल अच्छी होती है तो नाजकी पैदावार में गेहूँ दो-तीन लाख मनसे भी अधिक पैदा हो .. जाते हैं। 8 सिरहड़के समान दूसरे भी अच्छे गांव हैं। 9 इन जगहोंमें यदि मुकाल हो तो विकूपुर रावकी मददके लिये दो हजार मनुप्योंकी जोड़ उसके पास हो सकती है। 10 देरावर और मुलतानका मार्ग इधर हो करके चलता है। II जिसकी आमदनी अच्छी है। . . . 12 ऐसी जगहको रावल केल्हणने प्राप्त की। 13 रावल लखणसेनके बेटे पुण्यपालको जेसलमेरसे निकाल दिया था, उसके एक पोता था। 14,15 जव राव राणंगदेकी विधवा पत्नीने राव केल्हणको कहलवाया कि मुझको घरमें डालदो तो मैं तुमको यह गढः देहूँ। 16 तव केल्हणने छल किया और कहलवाया कि अच्छी बात है।
SR No.010610
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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