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________________ १०८ ] मुंहता नैणसीरी ख्यात तठा पछै वेगी हीज श्री महाराजाजीरी फोज पोकरण ऊपर आई। रावळ सवळसिंघ खारैरा डेरां, श्रादमियां ७००सू आय, श्रीजीरा साथ भेळो हुवो । गढनूं संमत १७०७रा काती में कोस०॥ तळाव.. डूंगरसर डेरो हुवो । दिन ३ गढनूं ढोवो हुवो । पछै गढ माहिलांरा प्रांण छूटा । पछै रा।। गोपाळदास, रा।। वीठळदास, रा।। नाहरखांन विचै रावळ सबळसिंघ, भाटी रामसिंघ पंचाइणोतनूं फेरनै वात कीवी' । गढ माहै साथ थो सु परो काढियो । भा। पतो सुरतांणोत काम आयो । तठा पछै रा।। गोपाळदासजी, वीठळदासजी नाहरखांनजीतूं .. मिळनै रावळ सवळसिंघ सीख करनै रावळा साथरा डेरासू कोस०॥ . गयो । त? जेसळमेर था खबर आई1° | रावळ रामचंद भाटियांसू मिळनै कह्यो-"मोनूं क्युं माल वित ले परो नीसरण दो तो हूं देरावर जाऊ1 ।" तरै पांचै भाटियां सीहड़ रुघनाथ, दुरगादास, सीहै, देवीदांन, जसवंत सारै वात कबूल कीवी । कह्यो-“परो जा।" तरै कित रोहेक ताजो माल घोड़ा, ऊंठ ले रामचंद देरावर गयो । भा।। जसवंत वैरसलोत, राजधरांरी साखरा रांमचंद साथै गया । पर्छ। रावळ सवळसिंघ या खवर सांभळी, तर सताब चलायनै जेसळमेर गयो । उठे रावळ सबळसिंघ पाट बैठो । रावळ अमरसिंघ सवळसिंघरो, संमत १७१६ पाट बैठो” । I जिसके बाद महाराजा जसवंतसिंहजीकी सेना जल्दी-ही पोकरण पर चढ़ कर आ गई। 2 खारामें लगे महाराजाके सेना-शिविरमें, रावल सबलसिंह अपने ७०० आदमियों के साथ पाकर महाराजाकी सेनामें सम्मिलित हो गया। 3 वहांसे सम्बत् १७०७के कातीमें गढ़से आधे कोस पर डूंगरसर तालाव पर डेरा लगा। 4,5 तीन दिन तक गढ़ पर आक्रमण हुए, तब गढ वालोंकी हिम्मत टूटी। 6 बीचमें, परस्पर । 7 भेज कर बातचीत की। 8 गढ़के अंदर जो सेना थी उसको वहांसे निकाल दिया। 9 विदाईकी आज्ञा प्राप्त कर जब वह महाराजाकी सेनाके पड़ावसे प्राधा कोस गया। 10 वहां पर जैसलमेरसे खबर मिली। 11 मुझे कुछ धन और मवेशी आदि सायमें लेकर निकलने देग्रो तो मैं देरावर चला जाऊं। 12 चला जा। 13 तब कितनाक (बहुत-सा) ताजा माल (छांट कर अच्छे अच्छे) घोड़े और ऊंटोंको लेकर रामचंद देरावर चला गया। 14 भाटी जसवंत वैरसलोत और राजधर शाखाके अन्य भाटी रामचन्द्र के साथ चले गये । 15,16 जब रावल सबल- . . सिंहने यह खबर सुनी तो तुरन्त चल करके जैसलमेर पहुंचा और वहां वह गद्दी पर बैठ गया। 17 सबलसिंहका बेटा रावल अमरसिंह सम्बत् १७१६ में गद्दी बैठा।
SR No.010610
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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