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________________ [ ५० राजस्थान प्राच्यविद्याप्रतिष्ठान--विद्याभूषण-ग्रन्थ-संग्रह-सूची] . क्रमाङ्क ग्रन्थनाम.. ... ... कर्ता लिपिसमय पत्र संख्या विशेप विवरगा यादि (३४) (२१७) अगाधबोध ' (२१८) गुणउत्पत्तिनामा कबीर मियां वाजिद । १७१५ ४८८-४८६ ४८६-४६० | दोहे-चौपाईमें सरल ठेठ हिन्दीके पद्य हैं। देखो-मिश्रबन्धविनोद पृष्ठ ५५५ तथा १०४६ । ४६०-४६१ ४६१-४६२ | आदिमें-'साधन संगि सदा रहैं सुनो सयाने लोइ' ४६२-४६४ । (२१६) गुणघरियांनामा छन्द २६ (अन्तमें अरिल्ल) (२२०) गुणश्रीमुखनामा छन्द ३२ (अन्तमें अरिल्ल) (२२१) गुणधीमुखनामा छन्द ४६ (अन्त में परिल्ल) '. । (२२२) गुणहरिजननामा छन्द १६ (अन्तमें अरिल्ल) । (२२३) गुणनाममाला छन्द ६७ (अन्तमें साखी) (२२४) गुणगंजनामा छन्द ३३४ . . आदिमें-'हरको हूवो फूलसो डारी सिरको पोट' ४६४-४६५ ४६५-४६६ ४९६-५०५ | दोहा, सोरठा, चौपाइयों आदिमें अत्यन्त उत्तम साहित्यका अन्य है। विहारी प्रादिको भाषाको याद दिलाता है। प्रेमको पराकाष्ठाके भावोंसे भरपूर भाषाको सुपमा और माधुरीकी मूर्ति मियाँ वाजिदका हाल विनोदमें कुछ भी नहीं लिखा है। ५०५-५०६ ५०६-५०७ बहुत मनोहर छन्द हैं। अरिल्ल भी हैं।' (२२५) गुणनिर्मोहीनामा छन्द २५ । (२२६) गुणपैमनामा छन्द ३०
SR No.010606
Book TitleVidyabhushan Granth Sangraha Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopalnarayan Bahura, Lakshminarayan Goswami
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1961
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationCatalogue
File Size9 MB
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