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________________ १११ AATE firmal } निरोप शिकरण आदि .... (Rams पित रजजाजी (२०) सारनी (गोवायायनी) मोगजन । १८४६४७२-४६४ रचनाकाल-१७१० । ५ उल्लासों में इसको पूर्ति हुई है। समस्त छन्द ३०६; समस्त श्लोक ६००। १४६४-५०३ / प्राय: अप्पय छन्द का प्रयोग बहलता से फिया गया है। ५०३-५०६ रचनाकाल-१६८३ । 'ओंकार से स्वर और व्यञ्जन-कम में ५४ छप्पय छन्द है। ५०६-५१० ५१०-५११ .५११-५१३ सुमारवास । (२८) हरियोसानिन्नावणी (२६) firs.नितावणी (३०) तरक-जिन्तापणी (३१) रायगा (३४, ५५३ सया) (३२) श्रीपर का जजमल्ल राजाको . . १५५८-५७७, यह ग्रन्थ पाठ उल्लासों में पूर्ण हुया है। यह वादजी की करामात की कथा है। ३ १-२१० | दिल्ली अकबरगंजमें कल्याणवासकी. गुग-पर म्परामें सन्तोषदास द्वारा लिखित । यह पाठ शुद्ध है। २१०-३८३ पूर्ण। . . गटका---- (१) या माली शुलवाली ३५६५ अङ्ग ३७ १२) बाजी पर शुक्ष पद ४४० राग २७ .. ...... (३) पानगातगोको जामलीला परचई। चौपाई ६६२ दोहा २४, साखो २७ (४) जिलोजनकी परचई, पन्य २८ जनगोपाल ३८३-४५२ अनन्तदास ४५२-४५५ | अनन्तवास पीपाफी गुरुपरम्परामें थे।... ....
SR No.010606
Book TitleVidyabhushan Granth Sangraha Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopalnarayan Bahura, Lakshminarayan Goswami
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1961
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationCatalogue
File Size9 MB
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