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________________ [ ६ ] सही व्याख्या व विश्लेषण करते हुए किया । परन्तु इतिहासका यह कार्य भी वह अपने जीवनकालमें पूरा नहीं कर सके और बीच में ही कालने अक्षय व्यवधान डाल दिया । इससे मीरासम्बन्धी शोध में जो अपेक्षित पूर्णता उनके हृदयंगम थी एवं जिसको वह सम्भव कर रहे थे, वह भी शेष रह गयी थोर इतिहासके वे वेष्टन भी विद्याभूषणजीके सुपुत्र श्रीरामगोपालजी पुरोहितके कथनानुसार पुनः महाराजा साहिबको यथावत् प्रत्यर्पित कर दिये गये । प्रसिद्ध इतिहासज्ञ महामहोपाध्याय पं० गौरीशंकर हीराचन्द प्रोभाने अपने संस्मरणमें लिखा है कि 'विद्याभूषणजी इतिहासके अन्वेषक, तार्किक एवं मननशील व्यक्ति थे । इसीलिए मेरा उनका पत्रसम्बन्ध प्रायः होता रहता था ।' मुगल सम्राटोंकी ओरसे जयपुरनरेशों की सवारी के लिए प्रदत्त 'माहीमगतिव' के क्रमोल्लेखकी जानकारी प्राप्त करनेके लिए स्व० विद्याभूषणजीसे श्रीप्रोझाजीने जो पत्रव्यवहार किया था वह बहुतसे सम्पुष्ट प्रमाणों और ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित है । विद्याभूषणजीके महत्वपूर्ण पत्रोंका संकलन, जिनकी संख्या साढ़े छह सहस्रप्राय: है, उनके आत्मज श्रीयुत पं० रामगोपालजी, वी. ए. एल एल. बी. के पास है । ये पत्र हिन्दी, अंग्रेजी और उर्दू में हैं । हिन्दी पत्रोंकी छंटनी राजस्थान प्राच्यविद्या-प्रतिष्ठान, जोधपुर द्वारा करवादी गयी है तथा अन्य पत्रों का विभक्तीकरण श्रीरामगोपालजी साहव अपनी रुग्णावस्था में भी पूर्ण मनोयोगसे करवा रहे हैं | मींरावृहत्पदावलोका विशाल, प्रामाणिक संग्रह, विद्याभूषणजीकी अमर देन है । इसमें अद्यावधि अज्ञात मीग़के छह सौ पदों का प्रद्भुत संकलन किया गया है, जिनकी ज्ञात साढ़े तीन सौ पदोंके साथ पूर्ण संख्या नौ सौ पचास के लगभग है | मींरासम्बन्धी अज्ञात पदोंका यह उद्धार विष्णुके गजेन्द्र मोक्षकी ग्रथवा वराहके धरा- उद्धारकी स्मृति दिलाता है । विद्याभूषणजीने देशके कोनेकोनेसे पत्रव्यवहार कर मीरांके सम्वन्धमें अभूतपूर्व जानकारी प्राप्त की थी । मीरांके जितने पद उन्होंने प्राप्त किये, उनको भाषा, भाव, शैली, लोकश्रुति और परम्परा आदिकी प्रामाणिक कसौटियों पर उन्होंने परखा है और सौ टंच सुवर्णको ही मीरांबृहत् पदावली में स्थान दिया है । यद्यपि विद्याभूषणजीके पास समय-समय पर ग्राने वाले विद्वानों और उनके बाद भी पुरोहित श्रीरामगोपालजी से सम्पर्क साधने वाले कतिपय आधुनिक शोधकर्ताओंोंने इस संकलनसे आशातीत लाभ उठाया है और स्वतन्त्र निबन्धोंको रचनाके रूपमें प्रकाशित भी करवा दिया है, फिर भी स्वर्गीय विद्याभूषणजीके पत्रव्यवहारसे ऐसी अनेक बातें सम्मुख
SR No.010606
Book TitleVidyabhushan Granth Sangraha Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopalnarayan Bahura, Lakshminarayan Goswami
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1961
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationCatalogue
File Size9 MB
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